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Wednesday 6 June 2018

एससी-एसटी को कानून के तहत प्रमोशन में आरक्षण देने से केंद्र पर रोक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

** आरक्षण के आधार पर प्रमोशन का भविष्य संविधान पीठ के फैसले पर निर्भर रहेगा
** जस्टिस गोयल ने पूछा- अभी प्रमोशन कैसे हो रहे हैं?, केंद्र ने कहा- ठप पड़े हैं, यही तो समस्या है 
** प्रमोशन रुकने की वजह से 14 हजार पदों पर नियुक्तियां लटकी हैं, सरकार ने कहा- अब एससी-एसटी के प्रमोशन के दरवाजे खुलेंगे 

नई दिल्ली : एससी-एसटी वर्ग के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट की इजाजत मिल गई है। कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कानून के तहत प्रमोशन में आरक्षण देने पर केंद्र सरकार पर कोई रोक नहीं है। हालांकि, ऐसी नियुक्तियों का भविष्य इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले पर निर्भर करेगा। केंद्र की ओर से एडिशनल सॉलीसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने मंगलवार को जस्टिस एके गोयल और अशोक भूषण की वेकेशन बेंच के समक्ष एससी-एसटी के प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को प्रमोशन देना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन विभिन्न हाईकोर्ट के फैसलों और सुप्रीम कोर्ट के 2015 के यथास्थिति आदेश की वजह से कई विभागों में प्रमोशन लटकी हुई है। इस कारण करीब 14 हजार पद खाली हैं। मंगलवार को केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट के 23 अगस्त 2017 के फैसले को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग का 13 अगस्त 1997 का एक ऑफिस मेमोरेंडम रद्द कर दिया था, जिसमें प्रमोशन में आरक्षण अनिश्चितकाल के लिए देने की व्यवस्था थी। एससी-एसटी कर्मियों के प्रमोशन में आरक्षण से जुड़ी कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। यह याचिकाएं संविधान पीठ को रेफर की जा चुकी हैं। अभी संविधान पीठ का गठन नहीं हुआ है।
आरक्षण के मुद्दे पर जल्द सुनवाई के लिए केंद्र ने दी ये 2 दलीलें
दिल्ली हाईकोर्ट, बॉम्बे हाईकोर्ट व पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एससी-एसटी के प्रमोशन में आरक्षण पर अलग-अलग फैसले दिए हैं। इनके खिलाफ अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले भी अलग रहे।
एम नागराज केस में 2006 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रमोशन में आरक्षण पर लागू होता है। यह कहता है कि एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देते हुए क्रीमी लेयर का कॉन्सेप्ट लागू नहीं कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट लाइव
जस्टिस एके गोयल : कोर्ट इस मामले में अंतरिम आदेश कैसे दे सकता है?
मनिंदर सिंह, एएसजी : महाराष्ट्र सरकार बनाम विजय जार्ज केस में संविधान पीठ ने 15 नवंबर 2015 को प्रमोशन में आरक्षण में यथास्थिति का आदेश दिया था। वहीं, जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता केस में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 17 मई को कहा था कि कोर्ट में लंबित याचिका केंद्र सरकार को प्रमोशन से नहीं रोकती। कानूनन प्रमोशन दे सकते हैं। देशभर में अटके 14000 मामलों में यही राहत चाहते हैं।
जस्टिस एके गोयल : अभी प्रमोशन कैसे हो रहे हैं?
मनिंदर सिंह : बिल्कुल भी नहीं हो रहे। ठप पड़े हैं। यही तो समस्या है। सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच कह चुकी है कि संविधान पीठ ही इस पर फैसला करेगी कि एससी-एसटी के प्रमोशन में क्रीमी लेयर के मुद्दे से जुड़े एम नागराज केस पर दोबारा नजर दौड़ाने की जरूरत है या नहीं? संविधान का अनुच्छेद 16 (4ए) सरकार को उन एससी-एसटी कर्मियों को प्रमोशन में आरक्षण देने का हक देता है, जिनका सरकार के अनुसार सर्विस में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
जस्टिस एके गोयल : क्या यही प्रावधान आपको अधिकार देता है?
शांति भूषण, सीनियर एडवोकेट: 14 नवंबर, 2017 को त्रिपुरा बनाम जयंता चक्रवर्ती केस में कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण संबंधी मामले संविधान पीठ को भेजने की बात कही थी। कोर्ट ने कहा था कि संविधान पीठ का गठन होने तक अगर कोई जरूरत हो तो पक्षकार चीफ जस्टिस के समक्ष मेंशनिंग कर राहत की अपील कर सकते हैं।
मनिंदर सिंह : केंद्र सरकार कानून के अनुसार ही प्रमोशन देना चाहती है।
जस्टिस एके गोयल : आप कहते हैं कि कानून है तो उसका अनुसरण करें। मामला कोर्ट के समक्ष मेंशन करने की जरूरत ही नहीं है। संविधान पीठ के फैसले तक आप कानून के अनुसार जो सही है, वह करें।
मनिंदर सिंह : आपके कहने का अर्थ है कि हम कानून के अनुसार कर्मियों को पदोन्नति देने के लिए स्वतंत्र हैं।
कोर्ट ने बाद में कानून के तहत प्रमोशन करने का आदेश जारी कर दिया।
दलित मुद्दों पर घिरी सरकार के लिए चुनावी साल में बड़ी राहत : केंद्र सरकार अक्सर दलितों के मुद्दों पर घिरी रहती है। चुनावी साल में सुप्रीम कोर्ट की यह राहत सरकार के लिए अहम मानी जा रही है। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि इस फैसले से एससी-एसटी वर्ग के कर्मचारियों के लिए सरकारी नौकरियों में प्रमोशन के दरवाजे खुलेंगे।

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