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Tuesday 4 April 2017

बेबस व्यवस्था, सुबकती शिक्षा, दरकती आस्था

** सरकारी स्कूलों में सुविधाओं के अभाव में दाखिला करवाने से कतरा रहे अभिभावक
फतेहाबाद : नई व्यवस्था। नव सत्र। नया प्रवेश उत्सव। नई उमंगें। निजी और सरकारी-दोनों ही स्कूलों में। सोमवार को भी कमोबेश यही सच सामने आया। शिक्षा के मंदिरों में दाखिले को लेकर गजब का उत्साह रहा। स्कूली बच्चे अपने अभिभावकों की अंगुली थामे स्कूलों की राह थे। उन्हीं बच्चों की भीड़ में जगजीवन पुरा का मोनू भी था। उसे सातवीं कक्षा में प्रवेश लेना था। सरकारी व्यवस्था से खिन्न वह अपने पिता राजेंद्र कुमार से कह रहा था-पापा, अब देखना कितने अंक लाता हूं। बस, एकबार प्राइवेट स्कूल में1दाखिला तो हो जाने दो। राजेंद्र भी बेटे की पर थपकी देते हुए बोला-पता है बेटा। सरकारी स्कूलों में व्यवस्था ही नहीं है तो शिक्षा कहां से होगी। इसीलिए तो लोगों की सरकारी स्कूलों से भरोसा उठ गया है। 
यह अकेला मोनू अथवा उसके पिता राजेंद्र की व्यथा नहीं है। सरकारी स्कूलों से अधिकतर लोगों की आस्था दरकती जा रही है। कारण कि खुद व्यवस्था बेबस है। शिक्षा सुबक रही है। यह आलम तो तब है जबकि प्रदेश सरकार करोड़ों रुपये का बजट स्कूलों को दे रही है। यहां तक कि हर साल एक विद्यार्थी पर 20 से 25 हजार रुपये खर्च हो रहा है। लेकिन बच्चों को सरकारी स्कूलों से जोड़ने का प्रयास शून्य ही रहा है। जिले के 626 सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए 5916 पदों की मंजूरी शिक्षा विभाग ने दे रखी है लेकिन हालात यह हैं कि 2914 रेगुलर शिक्षक ही स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। 867 गेस्ट टीचर स्कूलों में पढाने के बावजूद 2135 पद खाली पड़े हैं। इसके अलावा इंफ्राट्रक्चर की अगर बात करें तो स्कूलों में विद्यार्थियों के बैठने के लिए डयूल डेस्क नहीं है। हर दूसरा विद्यार्थी जमीन पर बैठता है। इसके अलावा 29 ऐसे स्कूल हैं जहां पर एक भी डयूल डेस्क नहीं है। सुविधाएं न होने के कारण अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला करवाने से डरते हैं।

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