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Friday 17 June 2016

बच्चों को फेल न करने की नीति और सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) को लेकर राज्यों में नाराजगी

नई दिल्ली : पहली से आठवीं कक्षा तक बच्चों को फेल न करने की नीति और सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) को लेकर राज्यों में नाराजगी साफ नजर आने लगी है। इससे प्रदेशों में गिरते शिक्षा के स्तर को लेकर चितिंत पंजाब और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों ने केंद्र से इनमें बदलाव करने की मांग की है। यह जानकारी बृहस्पतिवार को राजधानी में आयोजित विद्याजंलि कार्यक्रम के उद्घाटन के मौके पर मौजूद पंजाब और जम्मू-कश्मीर के शिक्षा मंत्रियों ने दी। पंजाब के शिक्षा मंत्री दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि फेल न करने की नीति से राज्य में शिक्षा के स्तर में गिरावट आई है। बल्कि इससे छात्रों और शिक्षकों के मूल्यांकन की व्यवस्था भी कमजोर हुई है। पांचवी और आठवी कक्षा में बोर्ड की परीक्षा खत्म करने से माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा के स्तर में गिरावट आई है। इसे देखते हुए पंजाब सरकार ने राज्य शिक्षा बोर्ड की मदद से पंजाब में परीक्षा करवाई है। इसके नतीजे उत्साहित करने वाले हैं। पांचवी कक्षा में परीक्षा में बैठने वाले बच्चों की संख्या 2 लाख 14 हजार थी। 
इसमें 80 फीसदी बच्चे पास हुए और करीब 67.3 फीसदी बच्चों ने 60 फीसदी अंक प्राप्त किए। 80 फीसदी अंक पाने वाले बच्चों का आंकड़ा 19 फीसदी रहा। केवल पास होने वाले यानि 33 फीसदी अंक पाने वालों की संख्या 3.12 फीसदी थी। परीक्षा में किसी बच्चे को फेल नहीं किया गया था। लेकिन परीक्षा देना सभी बच्चों के लिए अनिवार्य था। इसका प्रभाव बच्चों और माता-पिता दोनों पर पड़ा। परीक्षा के दबाव में न केवल बच्चों ने पढ़ाई की बल्कि उनके माता-पिता ने भी इसे गंभीरता से लिया। आरटीई कानून में बदलाव कर उसे पांचवी और आठवी कक्षा में अनिवार्य किया जाना चाहिए। 
जम्मू-कश्मीर का पक्ष 
जम्मू-कश्मीर के शिक्षा मंत्री नईम अख्तर ने कहा कि उनके राज्य में सर्वशिक्षा अभियान की वजह से शिक्षा का स्तर काफी नीचे चला गया है। उन्होंने निजी संस्था असर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2014 में राज्य में आठवीं कक्षा पास करने वाले 60 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा की किताबें न तो पढ़ पा रहे थे और न ही उनमें लिखे शब्दों को लिख पा रहे थे। उन्होंने कहा कि सर्वशिक्षा अभियान के तहत केवल स्कूल खोलने की होड़ मची हुई है। एक या दो कमरों के प्राइमरी स्कूलों को एक या दो शिक्षक चलाते हैं। इससे शुरुआती दिनों में बच्चों को ठीक से शिक्षा नहीं मिल पाती है। हालात यह है कि जब यह बच्चे माध्यमिक या उच्चतर स्तर पर जाते हैं तो वहां का रिजल्ट भी खराब हो जाता है। नईम ने प्राइमरी स्कूलों में सार्वजनिक भागीदारी पर जोर दिया। बल्कि कहा कि अगर स्थानीय लोग प्राइमरी स्कूलों से जुड़ते हैं या स्वेच्छा से बच्चों को पढ़ाते हैं तो उससे शिक्षा का स्तर सुधरेगा।                                                                       hb

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