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Thursday 11 August 2016

स्कूली शिक्षा की हालत : यूं कैसे पढ़ेंगे हम

प्रदेश में स्कूली शिक्षा की हालत किसी से छिपी नहीं है। स्कूलों की स्थिति में व्यापक बदलाव की बातें तो बहुत हो रही हैं। नित नई नीतियां भी बन रही हैं,लेकिन स्कूलों में शिक्षक ही नहीं होंगे तो बदलाव की उम्मीद ही बेमानी है। पहले से ही शिक्षक भर्ती प्रक्रिया अटकी हुई हैं। दर्जनों स्कूल एक ही शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। इस तंगहाली में 4000 शिक्षकों को चुनाव आयोग ने सर्वे पर भेज दिया। ऐसा क्यों हो रहा है। बार-बार शिक्षकों को शिक्षण कार्य से अलग जिम्मेवारी न सौंपने पर चर्चा होती है। पर नतीजा होता है ढाक के वही तीन पात। शिक्षा विभाग भी इस बदलाव के लिए तैयार नहीं है। विभाग ने ही छह हजार शिक्षकों को सेमिनार में व्यस्त कर रखा है। नया सत्र शुरू होने के बाद से पढ़ाई सही ढंग से शुरू ही नहीं हो पाई है। यह सही है कि नियमित तौर पर शिक्षकों को नई शिक्षा प्रणाली और क्षेत्र में आ रहे बदलाव के बारे में प्रशिक्षित करते रहना चाहिए, लेकिन प्रशिक्षण उस समय दिया जाए,ं जब स्कूलों में अवकाश हों। इन प्रशिक्षण शिविरों का धरातल पर कितना असर दिख रहा है, इसमें भी असमंजस है।
एक ओर पहले ही स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं, ऐसे में इस तरह की जिम्मेदारी व्यवस्था को और बिगाड़ेगी। अदालतें भी आदेश दे चुकी हैं। ऐसे में क्यों सरकारें ठोस नीति नहीं बना पा रही हैं? स्कूलों में शिक्षण स्तर में सुधार की जिनकी जिम्मेदारी है, वे क्यों मौन हैं? निराशाजनक परीक्षा परिणाम के बाद विशेषज्ञ सक्रिय होते हैं। लेकिन समय बीतता है। सब शांत हो जाता है और फिर अगले परीक्षा परिणाम तक कोई चर्चा ही नहीं होती। हालांकि सरकार स्कूलों में राजनीति को समाप्त करने के लिए तबादलों को ऑनलाइन कर रही है। हाजिरी को बायोमीटिक किया गया है। ये शुरुआती कदम स्वागत योग्य हैं, लेकिन केवल इनसे सब कुछ बदल जाएगा, इसकी उम्मीद करना ही बेमानी है। आवश्यकता है अफसरों के नजरिये में भी बदलाव लाया जाए। उन्हें यह समझना होगा कि शिक्षक का कार्य ज्ञान बांटना है और उन्हें इसके लिए पर्याप्त समय व पर्याप्त छूट दी जानी चाहिए। बहुत से शिक्षक बेहतर करना चाहते हैं लेकिन क्या हमारी व्यवस्था ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करती है? क्यों न शिक्षकों की एसीआर व भत्ते उनके परिणाम से जोड़ दिए जाएं? साथ ही उनके कार्यक्षेत्र व पिछले परिणाम की भी समीक्षा हो। विभाग की देखरेख का जिम्मा बाबुओं के नहीं शिक्षाविदों के हाथ हो। कुछ ठोस होगा तभी हमारे बच्चे सही से पढ़ पाएंगे। और सही पढ़ेगा हरियाणा तो बढ़ेगा हरियाणा।                                             djedtrl 

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