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Friday 31 January 2014

शिक्षा के दावे फेल, बिना मुखिया के चल रहे जिलेभर के 200 स्कूल

** विद्यालयों में आधारभूत सुविधाओं का टोटा
** न ही खेल मैदान और न ही सामान
कैथल : भले ही सरकार और शिक्षा विभाग राजकीय स्कूलों को ऊपर उठाने के लिए करोड़ों की आधारभूत सरंचना देने के दावे करे लेकिन यह दावे केवल फाइलों तक सिमटते नजर आ रहे हैं क्योंकि धरातल कुछ ओर ही बयां कर रही है। 
आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो जिले में करीब 200 प्राथमिक स्कूल बिना मुखिया के चल रहे हैं। ऐसे में इन स्कूलों में अध्यापकों व बच्चों की पढ़ाई कैसे होती होगी इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में 611 स्कूल चल रहे हैं। इनमें प्राथमिक स्कूलों की संख्या 393 है। इन स्कूलों में आज भी हेड टीचर के 200 पद खाली पड़े हैं। केवल हेड टीचर ही नहीं अध्यापकों के पद भी करीब 80 पद खाली पड़े हैं। जिले में प्राथमिक स्कूलों में करीब 600 अतिथि अध्यापक पढ़ा रहे हैं। जिले में राजकीय स्कूलों में वर्तमान में करीब 1 लाख 31 हजार 65 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यदि प्राध्यापकों की बात की जाए तो जिले में राजकीय स्कूलों में प्राध्यापकों के भी करीब 200 पद रिक्त हैं। हाल ही में शिक्षा विभाग द्वारा की गई भर्ती से प्राध्यापकों के पद भरने की उम्मीद है। 
प्राथमिक स्कूलों में बेंच और न टाट
जिले के अधिकतर प्राथमिक स्कूलों में विभाग द्वारा न ही बेंच मुहैया कराए गए हैं और न ही टाट। गर्मी व सर्दी के मौसम में मजबूरन बच्चों को फर्श पर बैठकर ही शिक्षा ग्रहण करनी पड़ रही है। 
यहां यह कहना जरूरी होगा कि शिक्षा विभाग ने करीब चार वर्ष कुछ स्कूलों में बैंच मंगवाए थे जो निम्न गुणवत्ता के होने से टूटने से स्कूल कमरों की छतों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
कहां से पीएं स्वच्छ पानी
सरकार स्वच्छ पेयजल की बात तो करती है लेकिन स्कूलों में आरओ का प्रबंध नहीं है। 
कुछ ही स्कूलों में दानी सज्जनों की सहायता से आरओ सिस्टम लगाए गए हैं। आज भी जिले के करीब 80 प्रतिशत स्कूलों में आर ओ की सुविधा नहीं है, जिससे बहुत परेशानी होती है।
बिना मैदान के कहां खेलें खेल
सरकार निजी स्कूलों पर तो खेल मैदान की शर्त लगा रही है लेकिन जिले में करीब 100 से भी अधिक स्कूल ऐसे हैं जिनमें खेल मैदान का प्रबंध नहीं है। जिन स्कूलों में खेल मैदान है तो वह समतल नहीं है। समतल कराने को स्कूल के पास बजट नहीं है। इस बजट के कारण विद्यार्थियों को खेल के लिए मैदान ठीक नहीं है।
नहीं है खेल सामान
यदि अध्यापक खेलों की तैयारी करवाए तो इसमें भी सामान की कमी आड़े आ रही है। अधिकतर स्कूलों में खेलों का सामान ही नहीं है। 
चपरासी व चौकीदार के भरोसे स्कूल
जिले के स्कूलों में चपरासी और चौकीदारों का टोटा है। अधिकतर स्कूलों में पियन व चौकीदार पार्टटाइम पर लगे हुए हैं। जो प्राथमिक स्कूल अन्य स्कूलों के साथ नहीं है तो वहां पर अध्यापकों को स्कूल की घंटी भी स्वयं ही बजानी पड़ रही है। 
बच्चों का नहीं भ्रमण का प्रबंध
सरकार व विभाग ने बच्चों की किताबों में पाठ्यक्रम तो आधुनिक लागू कर दिया लेकिन बच्चों के विभिन्न ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों के भ्रमण का कोई प्रबंध नहीं है। यदि बच्चों को भ्रमण कराया जाए तो इससे उनका सर्वागीण विकास हो सकता है।
शीघ्र भरे जाएं खाली पद 
राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जिला प्रधान राजेश बेनीवाल ने बताया कि विभाग को चाहिए कि सभी खाली पदों पर शीघ्र अध्यापकों की भर्ती करे। विभाग ने एचटी के लिए पोस्ट तो सेक्शन की लेकिन इसमें स्कूल में 150 बच्चे अनिवार्य कर दिए जिसके कारण अधिकतर स्कूलों में हैड टीचर का पद खाली पड़ा है। 
अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया जारी
जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सतीश राणा ने बताया कि शिक्षा विभाग में प्राध्यापकों व अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया जारी है। शीघ्र ही अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी होने उपरांत स्कूलों में भेज दिए जाएंगे। रोशन लाल पंवार ने बताया कि डबल बैच में 2000 में लगे अध्यापकों की सुनवाई में न्यायालय ने सरकार को आदेश दिए कि वह एक ऐसी सूची तैयार कर न्यायालय को दिखाए। इसके लिए ऐसा समाधान निकाला जाए।                                          dj

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