नई दिल्ली : स्कूली शिक्षा में बदलाव की आस लगाए बैठे लोगों को इस बार फिर
निराश होना पड़ेगा, बदलाव का यह बिल इस बार भी रास से पारित नहीं हो सका।
हालांकि संसद के मानसून सत्र का शुक्रवार को अंतिम दिन है, लेकिन राज्यसभा
के बिजनेस में यह शामिल नहीं है। यह अहम इसलिए भी है, क्योंकि इस बिल के
पारित होने से स्कूलों में 8वीं तक फेल न करने की नीति खत्म हो जाएगी। अभी
शिक्षा के अधिकार कानून के तहत किसी भी बच्चे को 8वीं तक फेल नहीं किया जा
सकता है।
सरकार का मानना है कि इससे स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता बिगड़ रही है। फेल न करने की नीति से स्कूलों में पढ़ाई का स्तर खराब हो रहा है। बच्चे भी परीक्षा न होने से पढ़ाई की ओर से वैसा ध्यान नहीं देते है, जैसा होना चाहिए। सरकार ने बदलाव के इस बिल को संसद के बजट सत्र में ही लोस से पारित करा लिया था, तब से यह रास में अटका हुआ है। हालांकि सरकार ने इसे राज्यसभा से पारित कराने की पिछली बार भी कोशिश की थी, लेकिन हंगामे से यह पारित नहीं हो सका था। इस बार मानसून सत्र को इस बिल के पारित होने की उम्मीदें थीं। मानव संसाधन विकास मंत्रलय इसे पारित कराने के लिए पूरी ताकत से जुटा भी हुआ था। इस दौरान बिल कई बार बिजनेस में शामिल भी हुआ, लेकिन किन्हीं कारणों से चर्चा नहीं हो पाई। सरकार की इस पहल को ज्यादातर राज्यों का भी समर्थन है। हालांकि, बदलाव में इसे लेकर राज्यों की पूरी स्वायत्तता दी है, यानी जो राज्य इसे नहीं चाहते हैं, वह पुरानी व्यवस्था को ही लागू रख सकते हैं।
सरकार का मानना है कि इससे स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता बिगड़ रही है। फेल न करने की नीति से स्कूलों में पढ़ाई का स्तर खराब हो रहा है। बच्चे भी परीक्षा न होने से पढ़ाई की ओर से वैसा ध्यान नहीं देते है, जैसा होना चाहिए। सरकार ने बदलाव के इस बिल को संसद के बजट सत्र में ही लोस से पारित करा लिया था, तब से यह रास में अटका हुआ है। हालांकि सरकार ने इसे राज्यसभा से पारित कराने की पिछली बार भी कोशिश की थी, लेकिन हंगामे से यह पारित नहीं हो सका था। इस बार मानसून सत्र को इस बिल के पारित होने की उम्मीदें थीं। मानव संसाधन विकास मंत्रलय इसे पारित कराने के लिए पूरी ताकत से जुटा भी हुआ था। इस दौरान बिल कई बार बिजनेस में शामिल भी हुआ, लेकिन किन्हीं कारणों से चर्चा नहीं हो पाई। सरकार की इस पहल को ज्यादातर राज्यों का भी समर्थन है। हालांकि, बदलाव में इसे लेकर राज्यों की पूरी स्वायत्तता दी है, यानी जो राज्य इसे नहीं चाहते हैं, वह पुरानी व्यवस्था को ही लागू रख सकते हैं।
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