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Thursday 11 July 2013

पुस्तकें छापने वाली फर्म थी विवादित

** तीन आइएएस अधिकारी गए थे जांच करने, फिर भी दे दिया टेंडर
भिवानी : पहली से आठवीं कक्षा की पाठ्य पुस्तकों को प्रकाशित करने वाली मुंबई की जिस फर्म को ब्लैक लिस्ट करने की तैयारी भी चल रही है, वह पहले से ही विवादित थी। प्रदेश के तीन आइएएस अधिकारियों ने एक शिकायत के आधार पर जांच भी की थी। उनकी जांच में इस फर्म को कैसे हरी झंडी दी गई, यह तो जांच का विषय है।बता दें कि पहली बार प्रदेश सरकार ने गत वर्ष पहली से आठवीं कक्षा तक की पाठ्य पुस्तकें हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के माध्यम से प्रकाशित कराने का फैसला किया था। लाखों बच्चों को पाठ्य पुस्तकें लेने के लिए भटकना न पड़े, इसके लिए टेंडर में शर्त रखी गई थी कि पाठ्य पुस्तक प्रकाशित करने वाली फर्म जिला मुख्यालयों पर पहुंचाएगी। लेकिन अभी तक प्रकाशन का कार्य भी पूरा नहीं हो पाया है। 
142 करोड़ में प्रकाशित की जानी थी दो करोड़ पाठ्य पुस्तकें : 
शिक्षा बोर्ड प्रशासन ने गत वर्ष नवंबर 2012 में दो फर्मो को पहली से आठवीं कक्षा की पाठ्य पुस्तकें प्रकाशित करने का ठेका लगभग 42 करोड़ रुपये में दिया था। इन फर्मो को दो करोड़ पाठ्य पुस्तकें प्रकाशित कर नए शिक्षा सत्र (अप्रैल 2013) तक जिला मुख्यालयों पर पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। अब जुलाई माह भी लगभग आधा बीतने को है और शिक्षा सत्र भी आधा बीत चुका है लेकिन पाठ्य पुस्तकों का इंतजार विद्यार्थी कर रहे हैं। 
शिकायत की जांच करने मुंबई गए थे तीन आइएएस अधिकारी : 
मुंबई की एक फर्म की शिकायत शिक्षा बोर्ड प्रशासन को 2012 में मिली थी। इसकी जांच के लिए प्रदेश के तीन आइएएस अधिकारी दिसंबर 2012 में मुंबई गए थे। इन अधिकारियों ने आने के बाद क्या रिपोर्ट दी, इसका पूरा खुलासा तो नहीं हुआ, लेकिन इसके बावजूद फर्म को ठेका दे दिया गया। 
ठेका देते समय ये दिए गए थे तर्क :
* समयाभाव है, नया सत्र शुरू होने से पूर्व पुस्तकें छात्रों तक पहुंचाना जरूरी है। अब आधे से च्यादा सत्र जाने को है और न समय बचा और न ही पढ़ाई शुरू हो पाई।
* शिकायत किसी दूसरी कंपनी ने फर्जी तौर पर की थी और उसकी मंशा टेंडर रद कराना था। 
*फर्म की आर्थिक स्थिति ठीकठाक है। ..dj 
अब आ रही ये दिक्कत सूत्रों की मानें तो मुंबई की फर्म के पास पुस्तकों के लिए कागज खरीदने के पैसे नहीं हैं। फर्म के अधिकारी अब कागज खरीदने के लिए शिक्षा बोर्ड से दस करोड़ रुपये एडवांस चाहते हैं। लेकिन टेंडर की शर्तो के मुताबिक कम से कम 25 प्रतिशत पुस्तकों की सप्लाई करने पर ही 20 फीसदी राशि का भुगतान हो सकता है। वह कुछ नहीं बोल सकते  शिक्षा बोर्ड के सचिव डॉ. अंसज सिंह ने पूछने पर नो कमेंट्स की भूमिका अपना ली। उन्होंने कहा कि इस मामले में वे कुछ भी नहीं बोल सकते हैं। उन्होंने कहा कि एक फर्म पाठ्य पुस्तकें प्रकाशित कर बांटने में लगी हुई है और कई जिलों में पुस्तकें बांटी जा चुकी हैं।

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