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Sunday 6 July 2014

एपीएआर के मुद्दे पर विभाग करे मंथन

वार्षिक निष्पादन मूल्यांकन रिपोर्ट यानी एपीएआर के मुद्दे पर हरियाणा स्कूल लेक्चरर एसोसिएशन (हसला) के आक्रोश को गंभीरतापूर्वक महसूस कर शिक्षा विभाग को मंथन करना चाहिए कि उसके हर नए फैसले का तीव्र विरोध क्यों हो रहा है? यह निश्चित है कि आधारभूत तैयारी न करके निर्णय या नीति थोंपने की प्रवृत्ति से किसी का लाभ होने वाला नहीं। हसला का एपीएआर का सामूहिक बहिष्कार करने का आह्वान हालांकि सौ फीसद सफल तो नहीं हुआ लेकिन पूरे राज्य में यह संदेश पहुंचा है कि नया कदम तार्किकता, प्रासंगिकता के मानकों पर कतई सही नहीं है। इससे मूल्यांकन तो हो रहा है लेकिन कार्य का नहीं बल्कि प्राध्यापकों के रोष-असंतोष का। इससे पहले शिक्षा विभाग ‘टीचर नीड असेसमेंट’ के रूप में प्रयोग कर चुका है जिससे शिक्षा परिदृश्य को राहत तो नहीं मिली पर अध्यापक वर्ग को आहत ही किया गया। विडंबना देखिये कि प्राध्यापकों के कार्य के वार्षिक मूल्यांकन का प्रोफार्मा दिया गया पर उसमें लेक्चरर शब्द का इस्तेमाल ही नहीं किया गया। इससे भी अधिक चिंता उस वैकल्पिक शब्द पर है जो शिक्षकों के स्वाभिमान को तार-तार कर रहा है। क्या शिक्षा विभाग अध्यापकों की मन:स्थिति समझ पाने में सक्षम नहीं? क्या प्रोफार्मा को अंतिम रूप देने से पहले कई चरणों में उसे चेक नहीं किया गया? विभाग को कुछ और सवालों का भी जवाब देना चाहिए। हसला का आरोप है कि शिक्षा विभाग हर पहलू पर प्राध्यापक वर्ग को हाशिये पर रखना चाहता है, 5400 रुपये के पे ग्रेड की प्राध्यापकों की लंबे अर्से से अटकी मांग पर विभाग निर्णय क्यों नहीं ले रहा? उसके एक और आरोप पर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए कि चार वर्ष का सेवाकाल पूरा करने वाले हेडमास्टर को प्राचार्य पद पर पदोन्नत कर दिया जाता है लेकिन 21 वर्ष के सेवाकाल वाले प्राध्यापक को उससे वंचित रखा जा रहा है। असंतोष का एक कारण यह भी है कि नवनियुक्त पीजीटी को छठी कक्षा तक पढ़ाने को बाध्य किया जा रहा है। सरकार व शिक्षा विभाग अपने प्रयोगवाद को न्यायसंगत ठहराने के लिए चाहे जो भी तर्क दें पर इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि विभाग के हर नव प्रयोग में अति उत्साह की स्थिति तो जरूर दिखती है पर उसमें तार्किकता, व्यावहारिकता और प्रासंगिकता का सरासर लोप रहता है। इससे निर्णय या नीति, दोनों थोंपे गए लगते हैं। इस स्थिति से सदैव बचा जाना चाहिए। विभाग की शैली में सार्थक, सकारात्मक एवं तर्कसंगत बदलाव बेहद जरूरी है।              djedtrl

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