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Thursday 19 May 2016

नीट : परीक्षा बनी समस्या

देश भर के मेडिकल और डेंटल कॅालेजों में एनईईटी अथवा नीट को एक मात्र प्रवेश परीक्षा बनाने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश राहत के बजाय एक मुसीबत बनता दिख रहा है। कई राज्य सरकारें तो इसके विरोध में हैं ही, वे तमाम छात्र भी उलझन में हैं जो राज्यों के स्तर पर होने वाली मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयार कर रहे थे। इस विरोध और उलझन की बड़ी वजह एनईईटी पर इसी साल अमल करने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट को उन समस्याओं से अवगत कराया गया था जो इस परीक्षा को इसी साल अनिवार्य किए जाने से उत्पन्न होने वाली हैं, लेकिन पता नहीं क्यों उसने उन पर ध्यान देना आवश्यक नहीं समझा। भिन्न-भिन्न स्तरों पर होने वाली मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में लाखों छात्र बैठते हैं। एक बड़ी संख्या में छात्र अपने राज्य के शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम के आधार पर तैयारी करते हैं। कई राज्यों के शिक्षा बोर्डो का पाठ्यक्रम सीबीएसई से भिन्न है जबकि एनईईटी सीबीएसई के पाठ्यक्रम के आधार पर ही होगी। यह संभव नहीं कि छात्र मात्र दो महीने में सीबीएसई पाठ्यक्रम के आधार पर अपनी तैयारी कर लें। एक समस्या यह भी है कि कई राज्यों में मेडिकल प्रवेश परीक्षा क्षेत्रीय भाषाओं में होती है और एनईईटी केवल हिंदी और अंग्रेजी में होगी। स्पष्ट है कि यदि एनईईटी पर अमल होता है तो लाखों छात्रों के साथ अन्याय हो सकता है। अच्छा होता कि सुप्रीम कोर्ट इन सब समस्याओं का संज्ञान लेता और उनका समाधान भी करता। सैद्धांतिक तौर पर यह उचित है कि मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में दाखिले के लिए एक ही प्रवेश परीक्षा हो, लेकिन यह आवश्यक नहीं कि जो सैद्धांतिक तौर पर सही हो वह व्यावहारिक भी हो। कम से कम इसी वर्ष से एनईईटी पर अमल तो व्यावहारिक नहीं ही नजर आता। 
सुप्रीम कोर्ट इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि कुछ वर्ष पहले उसने ही मेडिकल और डेंटल कॅालेजों में दाखिले के लिए एक ही परीक्षा के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। तब उसके फैसले पर हैरत जताई गई थी। यह ठीक है कि उस फैसले को वापस ले लिया गया, लेकिन आखिर उसकी भूल सुधार का खामियाजा छात्र क्यों भुगतें? यह आवश्यक है कि केंद्र सरकार ऐसा कोई रास्ता निकाले जिससे न तो भिन्न पाठ्यक्रम के आधार पर मेडिकल परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों का अहित हो और न ही क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा देने वाले छात्रों का। उचित तो यह होगा कि खुद सुप्रीम कोर्ट आगे बढ़कर अपने फैसले पर नए सिरे से विचार करे। यह इसलिए अपेक्षित है, क्योंकि पहले उसने ही पुनर्विचार के अनुरोध को ठुकरा दिया था। जब केंद्र एवं ज्यादातर राज्य सरकारें यह कह रही हैं कि मात्र एक वर्ष की राहत दी जाए और अगले वर्ष वे एनईईटी अपनाने के लिए तैयार होंगी तो फिर इसका कोई औचित्य नहीं कि संशय कायम रहे। मेडिकल और डेंटल कॅालेजों में दाखिले के लिए एकल प्रवेश परीक्षा एक सही उपाय है। ऐसी परीक्षा इन कालेजों में दाखिले के नाम पर होने वाले भ्रष्टाचार को खत्म करने में सहायक बनेगी। होना तो यह चाहिए था कि इस तरह के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का काम मेडिकल काउंसिल करती, लेकिन वह खुद भ्रष्टाचार की जननी बनी हुई है। यही कारण है कि यदि यह सोचा जा रहा है कि केवल एनईईटी से निजी मेडिकल कॉलेजों के भ्रष्टाचार पर लगाम लग जाएगी तो यह सही नहीं।                                                          dj

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