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Saturday 7 September 2013

शिक्षा की खराब स्थिति पर भिड़े संपत सिंह और भुक्कल

चंडीगढ़ : प्रदेश में शिक्षा की खराब स्थिति पर विधानसभा में कांग्रेस विधायक एवं पूर्व वित्त मंत्री प्रो. संपत सिंह और शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल एक दूसरे से भिड़ गए। संपत सिंह ने शिक्षा की खराब स्थिति पर मंत्री को घेरा तो मंत्री ने उन्हें वास्तविक स्थिति की जानकारी न होने की बात कहकर कठघरे में खड़ा कर दिया। विवाद संपत सिंह के विधानसभा में दसवीं के खराब परीक्षा परिणाम पर पूछे गए सवाल को लेकर खड़ा हुआ। उन्होंने कहा कि दसवीं का खराब रिजल्ट सिर्फ सरकारी स्कूलों में ही है, जबकि यह परीक्षा निजी स्कूलों के बच्चों ने भी दी है। आठवीं का बोर्ड न सिर्फ सरकारी स्कूलों, बल्कि निजी स्कूलों के बच्चों के लिए भी खत्म हुआ है। संपत ने राज्य में शिक्षकों के खाली चल रहे पदों का जिक्र करते हुए कहा कि करीब तीस हजार पद रिक्त पड़े हैं। कहीं स्कूलों में बच्चे तो कहीं टीचर नहीं हैं। आरोही स्कूलों में शिक्षक नियुक्त नहीं हो पाए हैं। बच्चों को मिड डे मील का साफ सुथरा भोजन नहीं मिलता। संपत सिंह ने शिक्षा निदेशकों की बार-बार होने वाली बदली पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि शिक्षा निदेशक के बदले जाने से नीतियां व परियोजनाएं प्रभावित होती हैं। उन्होंने गेस्ट टीचर का मुद्दा उठाते हुए कहा कि या तो उन्हें नियमित किया जाए या नौकरी में न रखा जाए। गीता भुक्कल ने जवाबी हमला बोलते हुए कहा कि संपत सिंह को पूरी जानकारी नहीं है। खराब रिजल्ट इसलिए भी आया है कि राज्य सरकार ने प्रैक्टिकल और थ्योरी दोनों में पास होना अनिवार्य कर दिया है। खराब रिजल्ट की पड़ताल के लिए कमेटी बनाई गई है, जिसकी अध्यक्ष वह स्वयं हैं।भुक्कल ने कहा कि कि शैक्षणिक रूप से पिछड़े 36 खंडों में स्थापित किए गए आरोही मॉडल स्कूलों में वर्तमान में 4018 बच्चे दाखिल हैं तथा इन स्कूलों में प्राचार्य, टीजीटी, लाइब्रेरियन के 431 पद भरे गए है। इस पर संपत सिंह ने कहा कि उनकी बात को शिक्षा मंत्री समझ नहीं पाई हैं, जवाब में गीता भुक्कल ने कहा कि आप मुङो न समझाएं।
दसवीं के परीक्षा परिणाम के कारण तलाशेगी सरकार:
प्रदेश में दसवीं के खराब परीक्षा परिणाम के कारण जानने के लिए राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं शिक्षण परिषद को निर्देश दिए गए हैं। परिषद की पूरी रिपोर्ट आने के बाद ही खराब रिजल्ट के वास्तविक कारणों का पता चल सकेगा, लेकिन राज्य सरकार को प्राथमिक तौर पर लगता है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आठवीं कक्षा की परीक्षा का बोर्ड समाप्त करने के बाद छात्रों को सीधे दसवीं में दाखिला देने के कारण परीक्षा परिणाम खराब आया है।   ....dj

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