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Tuesday 2 December 2014

निदेशक स्तर पर होगा विद्यालयों का निरीक्षण

** शिक्षा निदेशालय का निर्णय, बिजली-पानी व अन्य सुविधाओं की कमेटी करेगी जांच
रोहतक : शिक्षा निदेशालय ने प्रदेश के सभी विद्यालयों में बच्चों को मिल रही सुविधाओं की जांच के लिए निदेशक स्तर की टीम गठित की है जो प्रदेशभर के विद्यालयों का भ्रमण करेगी। वहीं, किसी भी विद्यालय में अनियमितताएं मिली तो उन पर विभागीय कार्रवाई की जा सकती है। 
प्रदेश में गिरते शिक्षा के स्तर व विद्यालयों में घट रही बच्चों की संख्या का पता लगाने के लिए शिक्षा विभाग ने अब स्वयं ही कमान संभाल लिया है। शिक्षा निदेशालय ने 15 निदेशकों की टीम तैयार की है जो प्रदेश भर के हजारों विद्यालयों का दौरा कर वहां बच्चों को मिलने वाली वाली सुविधाओं की जांच करेगी। यह टीम देखेगी कि स्कूल में बिजली, पानी, भवन की हालत, मिड डे मील व शिक्षकों की हाजरी की भी जांच की जाएगी। लगता है शिक्षा निदेशालय को अब जिला स्तर के अधिकारियों पर या तो भरोसा नहीं रहा या उनकी कार्यशैली से वह खुश नहीं है जिस पर निदेशालय ने यह निर्णय लिया है। 
स्कूलों में नहीं पानी व शौचालय की सुविधा : 
डॉ. दीपक चौहान ने आरटीआइ के माध्यम से खुलासा किया है कि प्रदेशभर के 26.5 फीसद स्कूलों में बच्चों के पीने के लिए पानी तक नहीं हैं। वहीं 19.8 फीसद स्कूलों में शौचालय नहीं है जबकि 22.4 फीसदी स्कूलों में छात्रओं के लिए अलग से शौचालयों की कमी हैं। एक तरह शिक्षा अधिकारी अपने क्षेत्र के स्कूलों में सभी सुविधाएं देने का दम भरते हैं वहीं स्कूलों की हालत उनकी हकीकत को बयां कर रही हैं। वहीं निदेशालय के लिए गए निर्णय से ही जमीनी हकीकत का भी पता चल सकेगा।
सुविधाओं का अभाव ही बच्चों के घटने का कारण
डॉ. दीपक चौहान ने आरटीआइ के माध्यम से ही खुलासा किया है कि स्कूलों में सुविधाओं का अभाव ही बच्चों की संख्या घटने का कारण है। सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने की बजाय शिक्षक धरने प्रदर्शन करने में व अन्य कामों में अधिक लगे रहते है। दूसरा बच्चों को मिलने वाली मूलभूत सुविधाएं भी उन्हें नहीं मिल पाती। वहीं शिक्षकों की हाजरी के लिए लगाई गई बायोमीट्रिक मशीन भी खराब पड़ी है जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है जिला स्तर पर शिक्षा अधिकारी स्कूलों को लेकर कितने गंभीर हैं। 
मिड-डे मील पर भी प्रश्न चिह्न् 
डॉ. दीपक चौहान ने आरटीआइ के माध्यम से खुलासा किया है कि प्रदेश भर के 26.5 फीसद स्कूलों में तो पानी ही नहीं है और करीब 10 प्रतिशत स्कूलों में पानी पीने योग्य नहीं है, जिससे स्कूलों में चलने वाले मिड-डे मील पर भी प्रश्न चिह्न् लग गया है। पानी न होने से बच्चों के लिए बनाया जाने वाला भोजन भी उन्हें नहीं मिल पा रहा है।
शिक्षा निदेशालय से नहीं मिला निर्देश : 
शिक्षा निदेशालय की ओर से स्कूलों का निरीक्षण करने के लिए उनके पास कोई सूचना नहीं आई है। यह टीम निदेशक स्तर पर बनाई गई है जो स्कूलों का निरीक्षण करेगी और अपनी रिपोर्ट निदेशालय को देगी।                                              dj


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