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Thursday 9 April 2015

गुरु जी कर रहे लिपिक का कार्य, विद्यार्थियों का भविष्य चौपट

** चंद क्विज के नाम पर कट रहे हैं शिक्षकों के दिन 
** अकेले रोहतक जिले की बात करें तो यहां कार्यालय में एक डीएसएस, एक डीएमएस, दो स्काउट गाइड, एक एईओ तैनात
** सूबे में 150 से अधिक लेक्चरर बाबूगिरी में उलझे
रोहतक : शिक्षा विभाग द्वारा नियुक्त किए गए सूबे के करीब 150 से अधिक गुरुजी इन दिनों लिपिक का कार्य कर अपना समय व्यतीत कर रहे हैं। इसका नतीजा यह है कि आए दिन सरकारी स्कूलों में अध्यापक की कमी के चलते तालाबंदी होती है और विद्यार्थियों का भविष्य चौपट होता है। सरकारी कार्यालयों में तैनात लेक्चरर साल में महज एक या दो क्विज का आयोजन कर अपनी ड्यूटी पूरी कर लेते हैं। 
अकेले रोहतक जिले की बात करें तो यहां कार्यालय में एक डीएसएस, एक डीएमएस, दो स्काउट गाइड, एक एईओ तैनात हैं। वहीं छह लेक्चरर सर्व शिक्षा अभियान के लिए हैं। पूरे प्रदेश की बात करें तो 150 से अधिक लेक्चरर इस कार्य के लिए लगाए गए हैं। इसमें विज्ञान व गणित विषय के शिक्षक हैं, जबकि स्कूलों में इन विषयों के शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं। इस संबंध में सेवानिवृत शिक्षक धर्मचंद भोला की मानें तो इन लेक्चरर को स्कूलों में भेजा जाना चाहिए। साल में महज एक या दो क्विज प्रतियोगिता होती हैं, ये वहां रह कर भी यह कार्य कर सकते हैं। इसके अलावा खाली वक्त में ये विद्यार्थियों की कक्षाएं भी ले सकते हैं। वहीं सूत्रों की मानें तो हर जिले में 10 से 15 लेक्चरर अपना कार्य कर रहे हैं। 
वेतन 50 हजार से अधिक, कार्य 12 हजार रुपये का
शिक्षा विभाग लेक्चरर को 50 हजार से अधिक प्रतिमाह का वेतन दे रहा है। जबकि लिपिक को 18 हजार रुपये प्रतिमाह, वहीं यदि डीसी रेट पर तैनाती है तो 10 से 12 हजार रुपये ही दिए जाते हैं। शिक्षा विभाग में काफी संख्या में प्राइवेट लिपिक, डेटा एंट्री आपरेटर तैनात है। हैरानी की बात है कि महज 10 हजार रुपये का काम करने वाले व्यक्ति की जगह लेक्चरर की तैनाती क्यों की गई है। जबकि विभाग में सबसे अधिक किल्लत उसी की है। 
पावर को हो रहा प्रयोग
लेक्चरर के लिए कार्यालय में ड्यूटी लगवाना कोई योग्यता नहीं है। बस इसके लिए पहुंच होना जरूरी है। एक बाद ड्यूटी कार्यालय में लगी उसके बाद कोई समस्या नहीं। इसके लिए विभाग ने भी कोई मानक निर्धारित नहीं किए हैं। वहीं लेक्चरर को दिन में सिर्फ चार पीरियड लेने होते हैं और वे इसे भी नहीं लेना चाहते।                                                             au


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