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Friday 22 January 2016

सरकारी स्कूलों में 50%, आंगनबाड़ी में 26% बच्चे अस्वस्थ

** सर्वे : स्कूल हेल्थ योजना के तहत अप्रैल से दिसंबर 2015 तक सरकारी स्कूलों और आंगनबाड़ियों में की गई थी स्वास्थ्य जांच 
हिसार : सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों में से पचास फीसदी बच्चे अस्वस्थ हैं। यह आंकड़े सरकार की ओर से चलाई स्कूल हेल्थ स्कीम के तहत बच्चों की जांच के बाद सामने आए हैं। स्कीम के तहत स्कूलों में पहली से बारहवीं कक्षा में 6 से 18 साल के बच्चाें के स्वास्थ्य की जांच की जाती है। अप्रैल से दिसंबर 2015 के बीच स्कूलों में 1 लाख एक हजार 608 बच्चों और आंगनबाडिय़ों में 55 हजार एक बच्चों के स्वास्थ्य की जांच की गई थी। जांच के दौरान स्कूलों में पचास फीसदी और आंगनबाडिय़ों में 0 से 6 साल के बच्चों में से 26 फीसदी अस्वस्थ मिले। हेल्थ चेक-अप मेें कुल 28 श्रेणियों की बीमारियों की जांच की जाती है। इन अलग-अलग श्रेणियों में यह आंकड़ा निकल आया है। इससे यह जाहिर होता है कि बच्चों को पोषण पूर्ण रूप से नहीं मिल रहा है। 
हेल्थ चेकअप स्कीम में ऐसे होती है जांच 
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम स्कूल और आंगनबाड़ी में 0 से 18 साल यानि पहली से बारहवीं कक्षा के बच्चों के स्वास्थ्य की जांच की जाती है। इस दौरान एक साल में आंगनबाड़ी में दो बार अौर स्कूल में दो बार जांच शिविर लगाया जाता है। इसके लिए दोनों ही शिविरों के लिए मोबाइल हेल्थ टीम दौरा करती है। जिसमें दो मेल डॉक्टर, फिमेल डाॅक्टर, फार्मासिस्ट एक एएनएम होती है। इसमें 4डी के तहत जांच की जाती है जिसमें जांच की कुल 28 श्रेणियां होती हैं। इसमें मुख्य रूप से 4डी में जन्म के समय से बच्चे में कमी, बच्चे में बीमारी, बच्चे में किस पोषक तत्व की कमी और मंदबुद्धि बच्चों में होने वाले विकास को जांच होती है। इसमें दांत आंखों के चेकअप भी किया जाता है। चेकअप के बाद रोग ग्रस्त बच्चों को सिविल अस्पताल में रेफर किया जाता है, ताकि बच्चों में पाई जाने वाले कमी का इलाज किया जा सके। 
50 फीसदी बच्चे अस्वस्थ होने की वजह 
जब संतुलित आहार नहीं मिलता तो बच्चों में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इसके दो प्रकार होते हैं, माइक्रो मैक्रो। माइक्रो में मिनरल विटामिन होते हैं, मिनरल की श्रेणी में आयरन, जिंक, कॉपर, लेडियम तत्व और विटामिन में ए,बी,सी,डी,के और शामिल हैं। वहीं मैक्रो में कार्बोहाइड्रेट, फैट प्रोटीन समाहित होते हैं। स्वस्थ शरीर के लिए इन सभी पोषक तत्वों का होना अनिवार्य होता है। इनकी कमी होने से शरीर में अनेक प्रकार की कमियां हो जाती हैं जिससे कई बीमारियां भी हो जाती हैं। सरकार इन कमियों की जांच कर उन्हें पूरा करने के लिए उपचार के तौर पर दवाई देती है। ऐसे में जांच के दौरान पचास फीसदी बच्चों में पोषक तत्व की कमी का पाया जाना चिंता का विषय है। 
हर छठे बच्चे में खून की कमी, आयरन की गोलियों का स्टॉक नहीं 
एक साल में जांच के दौरान पाया गया है कि हर छठे बच्चे में खून की कमी है। खून की कमी को पूरा करने के लिए स्कूल हेल्थ योजना के तहत आयरन की गोलियां भी जाती हैं। इस बारे में जब स्कूल हेल्थ विभाग में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि जुलाई 2015 के बाद से आयरन की गोलियां स्कूल आंगनबाड़ियों में नहीं दी गई है। इसका कारण विभाग से भेजे जाने वाला स्टॉक को बताया गया। ऐसे में सवाल ये है कि बिना आयरन की गोलियां के स्वास्थ्य विभाग बच्चों में खून की कमी को किस तरह पूरा कर रहा है।                                                          db 

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