** अंतरिम राहत मांग रहे युवाओं की नहीं सुनवाई, 21 से 23 तक दिल्ली में जुटेंगे देशभर के प्रभावित युवा
चंडीगढ़ : संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित सिविल सर्विस प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रारूप में बदलाव से प्रभावित युवाओं ने अंतरिम राहत के लिए केंद्र का दरवाजा खटखटाया है। कैंडल मार्च निकालने के बाद अब ऑल इंडिया यूपीएससी अभ्यर्थी संघ के बैनर तले हरयिाणा सहित देशभर के युवा 21 से 23 सितंबर तक दिल्ली में प्रदर्शन करेंगे।
यूपीएससी ने सिविल सर्विस परीक्षा में वर्ष 2011 से 2015 के बीच कई बदलाव किए थे। इसके तहत वर्ष 2011 में प्रारंभिक परीक्षा में सिविल सर्विस एप्टीट्यूड टेस्ट (सीसेट) लागू कर दिया गया। द्वितीय परीक्षा में इंग्लिश और तार्किक सवालों पर अधिक फोकस रहा, जिससे वर्ष 2014 तक लगातार हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के विद्यार्थियों के चयन का ग्राफ तेजी से गिरा। यूपीएससी द्वारा गठित निग्वेकर कमेटी ने भी सीसेट से ग्रामीण युवाओं और नॉन इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों की सिविल सर्विस में भागीदारी घटने की बात स्वीकार की। इसके मद्देनजर वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने सीसेट का प्रारूप बदला और वर्ष 2011 के प्रभावित छात्रों को 2015 में परीक्षा पास करने के लिए अतिरिक्त मौका दिया। मगर वर्ष 2012 से 2015 के बीच मौके गंवाने वाले युवाओं को सरकार भूल गई। प्रभावित युवा अरविंद, यदुवंशी, शिखा वत्स, आशीष बालियान, विभांशु और कौशल ने बताया कि 200 से अधिक सांसद उनके समर्थन में प्रधानमंत्री को पत्र लिख चुके हैं। मगर केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मामले मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे। अंतरिम राहत की फाइल मंत्रलय में गुम होकर रह गई है।
कैट ने दिलाई अंतरिम राहत
पिछले दिनों कुछ उम्मीदवारों ने कैट (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव टिब्यूनल) की शरण ली जिसके बाद उन्हें इस साल कोर्ट से अंतरिम राहत मिली और उन्हें प्रारंभिक परीक्षा में बैठने दिया गया। इसी तरह उत्तर प्रदेश और ओडिशा की सरकारों ने राज्य सिविल सेवा परीक्षा में लाए गए बदलाव से प्रभावित उम्मीदवारों को दो अतिरिक्त मौके दिए। इसी तर्ज पर सिविल सेवा परीक्षा के अभ्यर्थी केंद्र सरकार से अंतरिम राहत में कुछ चांस मांग रहे हैं।
इस आधार पर युवा मांग रहे अतिरिक्त मौका
- सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा में वर्ष 2011 में बदलाव हुआ, लेकिन इसकी सूचना नहीं दी गई।
- वर्ष 2013 में मुख्य परीक्षा में भी मूलभूत परिवर्तन किए गए जिसकी कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई।
- सामान्य अध्ययन (द्वितीय प्रश्नपत्र) में अंग्रेजी को 20 से 22 अंक का बना दिया गया।
- मानविकीय विषयों में स्नातक छात्रों की सफलता 65 से घटकर दस फीसद पर सिमट गई।
- 1979 में आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष एआर किदवई ने लोक नियोजन को समता का आधार माना और प्रभावित छात्रों को राहत दी।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने माना है कि किसी भी बदलाव को चरणबद्ध लागू किया जाए और प्रभावित छात्रों को पर्याप्त समय मिले।
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