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Monday 9 June 2014

शिक्षा विभाग, दिशाहीन विभाग

मूल्यांकन परीक्षा वास्तव में शिक्षा विभाग की ही परीक्षा ले रही है। इसके परिणाम ने विभाग को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है जिसके एक छोर पर मंत्री और दूसरे पर अधिकारी खड़े हैं, बीच में अविश्वास, अहम्, अनिश्चय की पगडंडी है। हर दिन उस पर रोड़े, कंकर, कीचड़, गड्ढे और कभी-कभी कांटे भी दिखाई दे जाते हैं। गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिले के लिए कितने यू-टर्न आए और अंत में दो तरह के परिणाम नजर आए और दुर्भाग्य से दोनों ही मूल मकसद के खिलाफ। पहले में ड्रॉ से लिस्ट निकली पर दाखिले नहीं हुए पर और दूसरी बार मूल्यांकन टेस्ट के नाम पर फिर गरीब बच्चों के धैर्य की परीक्षा ली गई पर तय समय तक परिणाम ही घोषित नहीं किए गए। कमोबेश यही स्थिति विभाग को उस समय ङोलनी पड़ी जब अध्यापकों के मूल्यांकन के लिए परीक्षा का आयोजन हुआ जिसका उन्होंने बहिष्कार कर दिया। कई अन्य फैसले भी हुए जिनमें अधिकारियों और मंत्री नीति और निर्णय के स्तर पर एक-दूसरे से टकराते दिखाई दिए। यह तो तय है कि दोनों की ही हालत महाभारत के अभिमन्यु जैसी है। दोनों को ही या तो चक्रव्यूह तक पहुंचना नहीं आता, यदि पहुंच भी गए तो बाहर नहीं निकलना आता। तो क्या सरकार को स्वयं अजरुन जैसे महारथी की भूमिका में नहीं आना चाहिए? इससे पहले कि नुकसान बढ़ जाए, जग हंसाई हो और एक-दूसरे को समझाने-बुझाने में ही सत्र बीत जाए, शिक्षा विभाग को अनिश्चय की स्थिति से बाहर लाने के लिए सरकार के मुखिया को स्वयं हस्तक्षेप करने निर्णायक की भूमिका निभानी चाहिए। 
शिक्षा विभाग में नीति और निर्णय को लेकर बनी असमंजस की स्थिति तात्कालिक और दीर्घकाल में निराशाजनक तस्वीर ही पेश करेगी। भ्रम और विरोधाभास से यदि वर्तमान ही डगमगा जाए तो अच्छे भविष्य की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। शिक्षा विभाग को चाहिए कि तमाम वास्तविकताओं, कमियों का संज्ञान ले और सीधी, स्पष्ट योजनाओं के माध्यम से शिक्षा क्षेत्र पर छाया धुंधलका दूर करे। मंत्री व अधिकारियों में कौरव या पांडव जैसा भ्रम या दंभ नहीं होना चाहिए। शिक्षा विभाग के सामने निजी स्कूलों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के साथ अनेक आधारभूत खामियों को दूर करने की चुनौतियां हैं और उसे कामयाबी तभी मिल सकती है जब योजना और क्रियान्वयन, नीति और रीति, उपयोग और व्यावहारिकता में गतिरोध समाप्त होगा। शिक्षा विभाग बिसात बिछाने का कक्ष नहीं और न ही इसे महाभारत का रणक्षेत्र न बनाया जाए।                             djedtrl

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