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Wednesday 21 September 2016

शिक्षक तबादला नीति पर हाई कोर्ट के सवाल

** कहा, दिव्यांग शिक्षकों के प्रति सरकार ने जिम्मेदारी का पालना नही किया 
** हाई कोर्ट ने सरकार को नीति पर पुनर्विचार की सलाह दी
चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने प्रदेश में शिक्षकों के लिए बनाई गई नई तबादला नीति पर सवाल उठाए हैं। हाई कोर्ट ने कहा है कि हरियाणा सरकार अपनी इस नीति पर फिर से विचार करे और दिव्यांग शिक्षकों का तबादला करने से पहले उनसे पूछे।
हाई कोर्ट ने मंगलवार को दो दिव्यांग शिक्षकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। ये दोनों शिक्षक नेत्रहीन है। हाई कोर्ट की एकल पीठ ने कहा कि सरकार ने अपनी तबादला नीति में दिव्यांग लोगों का ध्यान नहीं रखा और उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी का पालन नहीं किया। 
हाई कोर्ट ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन विलियम हॉकिंग के एक कथन का हवाला दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि समाज का नैतिक कर्तव्य है कि वह दिव्यांग लोगों के रास्ते में आने वाली सभी रुकावटों को दूर करें ताकि वह समाज के साथ चल सके। उम्मीद करता हूं कि यह शताब्दी दिव्यांग लोगों के लिए एक बड़ा बदलाव लाएगी।
हाईकोर्ट के जस्टिस आरएन रैना ने हरियाणा सरकार को सलाह दी कि वह तबादला नीति पर पुनर्विचार करे और किसी भी दिव्यांग टीचर के तबादले से पहले उसकी राय ली जाए। इससे ऐसे लोगों को बेवजह परेशान होने से बचाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने नई तबादला नीति के तहत पिछले दिनों हजारों पीजीटी व जेबीटी का तबादला किया था। इस नीति में दिव्यांग टीचर के लिए किसी भी तरह की कोई छूट नही दी गई थी। ऑनलाइन पोर्टल के आधार पर कंप्यूटर ने तबादला आदेश जारी किए थे।
इसके खिलाफ दो दिव्यांग शिक्षकों ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि वे पूर्ण रूप से नेत्रहीन हैं। राज्य सरकार ने उनकी समस्या को अनदेखा करते हुए उनका तबादला घर से दूर कर दिया। हाईकोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए तबादले आदेश को रद करते हुए कहा कि सरकार ने इस तरह के शिक्षकों को उनकी राय के बगैर ट्रांसफर कर एक तरह से सजा दी है।
हाई कोर्ट ने कहा कि जो टीचर पूर तरह से नेत्रहीन हैं उनके मामले में सरकार अपनी नैतिक जिम्मेदारी क्यूं भुल गई। यह तो एक तरह से इन टीचर को दंड देना जैसा हैं। हाईकोर्ट ने सरकार को कहा कि वह मंत्रिमंडल की बैठक कर इस नीति में संशोधन कर दिव्यांग शिक्षकों के लिए कुछ ढीले दे। इस नीति के मंत्रिमंडल द्वारा पारित होने के कारण शिक्षा विभाग कुछ भी करने में असमर्थ है।                                              dj

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