हरियाणा सरकार ने उच्चतर शिक्षा सेवा नियम 2010 में परिवर्तन कर हजारों पीएचडी धारकों के लिए कॉलेज स्तर पर सहायता प्रवक्ता के पद पर नौकरी के दरवाजे बंद कर दिए हैं।
सरकार ने उच्चतर सेवा नियम 2010 के अनुसार निजी विश्वविद्यालय से पीएचडी धारक अपात्र घोषित कर दिए गए हैं। केवल उन्हीं पीएचडी धारकों को नेट परीक्षा से छूट होगी, जिन्होंने राज्य या केंद्र विश्वविद्यालय या वैसे निजी विश्वविद्यालय पीएचडी हासिल की जो कि नेक से ए ग्रेड है। सरकार की इस नीति से हजारों युवाओं को भविष्य अंधकार में डूब गया है। निजी विश्वविद्यालय से पीएचडी के पढ़ाई कर चुके राजेंद्र का कहना है कि हरियाणा का एक भी निजी विश्वविद्यालय नेक से ग्रेडिड नहीं है। यहां तक की सरकारी विश्वविद्यालय चौ. देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा जो 2003 में बनी थी व बीपीएस विश्वविद्यालय खानपूर भी नेक से ग्रेडिड नहीं है। कॉलेज ओर विश्वविद्यालय की नेट से निरीक्षण का कार्य विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तय करता है। इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कॉलेज या विश्वविद्यालय को मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने के लिए पांच या सात साल का समय देता है।
किसी भी विश्वविद्यालय को खुलते ही नेक से निरीक्षण नहीं होता क्योंकि विश्वविद्यालय को विकसित होने में कुछ समय तो लगता ही है। जब हरियाणा सरकार को निजी विश्वविद्यालय की डिग्री अमान्य करनी है तो उसने प्रदेश में निजी विश्वविद्यालय खोलने की अनुमति दी ही क्यों है। बेरोजगार युवा काफी कठिनाइयों से फीस भरकर निजी व अन्य विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करके डिग्री प्राप्त करते हैं और सरकार उसे अमान्य घोषित कर देती है। पढ़े लिखे बेरोजगार युवा ने सरकार से मांग की कि इस तरह की शिक्षा विरोधी नीति को जल्द वापस लिया जाए।
Source: Dainik Jagran,22.11.12
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