.

.

Breaking News

News Update:

How To Create a Website

Friday 28 March 2014

पुस्तकों के जरिए अभिभावकों की जेब पर चल रही है कैंची

समस्या : निजी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को स्कूल से ही दी जा रही हैं किताबें 
करनाल : निजी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों की पुस्तकें बाजार से खरीदना समस्या मोल लेना है। क्योंकि प्रत्येक स्कूल अपनी मर्जी की पुस्तकें लगवाता है। ऐसे में एक विशेष दुकान से अभिभावकों को अपने बच्चों की पाठ्य पुस्तकें खरीदने को बाध्य होना पड़ता है। अधिकतर स्कूलों ने तो अपने प्रांगण में ही पुस्तकें उपलब्ध कराने की व्यवस्था कर रखी है। इसका कोई और कारण नहीं बल्कि मोटा कमिशन पाना है। स्कूलों का कमिशन 30 प्रतिशत तक बताया जाता है। 
निजी स्कूलों द्वारा हर साल दाखिले और एनुअल एक्टिविटी के नाम पर मोटी राशि ली ही जाती हैं, लेकिन प्राइवेट पब्लिशर्स की पुस्तकें सिलेबस में शामिल करना भी उनकी कमाई का एक जरिया बन गया है। कई ऐसी पुस्तकें लगवाई जाती हैं जो बाजार में आसानी से नहीं मिल पाती हैं। यही कारण हैं कि न चाहते हुए भी अभिभावकों को स्कूलों से अथवा स्कूलों के आसपास बने स्टालों से ही पुस्तकें खरीदनी पड़ती हैं। इस कारण से उन्हें पुस्तक विक्रेताओं के मनमाने रेट पर ही पुस्तकें खरीदनी पड़ती हैं। हालांकि कई स्कूलों ने अपने स्कूल परिसर में पुस्तक बेचने की इजाजत नहीं दी हैं, जबकि कई स्कूलों में पुस्तकें अंदर से ही दी जाती हैं। 
एनसीईआरटी सिलेबस की पुस्तकें ही लगें : जेके शर्मा 
अभिभावक एकता मंच के अध्यक्ष जेके शर्मा, अभिभावक प्रवीन कुमार, मनीष कुमार, कमलजीत सिंह का कहना है कि स्कूलों में एनसीईआरटी सिलेबस की पुस्तकें लगनी चाहिए। लेकिन निजी स्कूलों में ऐसा न करके प्राइवेट पब्लिशर्स की पुस्तकें लगाई जाती हैं। पब्लिशर्स के साथ सांठ गांठ होने के कारण पुस्तकों में मोटा कमिशन हासिल किया जाता है। पुस्तकों पर 30 प्रतिशत तक कमिशन स्कूलों की झोली में जा रहा है। जबकि अभिभावकों की जेब पर कैंची चल रही हैं। यह एक ऐसी समस्या बन चुकी है जिस कारण अभिभावकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 
अभिभावक बोले, बाजार में नहीं मिलती सभी पुस्तकें 
अभिभावक राजेश कुमार, विजेंद्र, सुभाष चंद्र, जगमाल सिंह का कहना है कि उनके बच्चे सेक्टर-6 स्थित एक स्कूल में पढ़ते हैं। जबकि पुस्तकें स्कूल से मिलती हैं। यहां तक की स्टेशनरी भी स्कूल से लेनी पड़ती हैं। जबकि बाजार में पुस्तकें खरीदने जाओ तो नहीं मिलती है। इस कारण उन्हें मजबूरन स्कूल से ही बच्चों की पुस्तकें लेनी पड़ती हैं। पांचवीं कक्षा के बच्चों की पुस्तकों और स्टेशनरी का सेट तकरीबन तीन हजार रुपए का है। 
"स्कूलों में पुस्तकों की बिक्री और कमिशन पाने के मामले में जांच के बाद ही वे कुछ कह सकते हैं।"--डॉ. राजन लांबा, अध्यक्ष सहोदय स्कूल कांप्लेक्स करनाल।                                  db

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.