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Saturday 30 May 2015

एक बच्चा पढ़ाने में 24 हजार सालाना, 82 हजार शिक्षकों की सैलरी पर हर माह ढाई अरब खर्च, फिर भी नतीजा इतना खराब!

** रोज औसतन 6 घंटे और साल में 180 दिन ही होती है पढ़ाई 
पानीपत : सरकारी स्कूलों में एक बच्चे को पढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार सलाना लगभग 24,900 रुपए खर्च करती है। 82 हजार स्कूल शिक्षकों की सैलरी पर सरकारी खजाने से हर माह ढाई अरब रुपए से ज्यादा का भुगतान होता है। ये पैसे आम लोगों के टैक्स से आते हैं। फिर सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर इतना खराब? 
स्कूल शिक्षकों में जेबीटी, मुख्य शिक्षक, सीएंडवी, मास्टर, एलीमेंटरी स्कूल मुख्याध्यापक, मिडिल हेड, जूनियर प्रवक्ता प्राचार्य शामिल हैं। सरकार इनके वेतन के रूप में हर माह लगभग 2,58,13,80,000 रुपए खर्च कर रही है। एक फ्रेशर जेबीटी को 30 हजार, फ्रेशर हेड सीएंडवी टीचर को 33,365, मास्टर वर्ग में एक फ्रेशर मास्टर को औसतन 45,000, एलीमेंटरी स्क्ल हेड फ्रेशर प्राध्यापक को 38,000, मुख्याध्यापक को 43,350 और प्राचार्य को 48,600 रुपए वेतन के रूप में हर माह मिलता है। प्रदेश में 14,504 स्कूल हैं। हर स्कूल में हर रोज औसतन 6 घंटे और सालभर में 180 दिन पढ़ाई होती है। 
हरियाणा स्कूल लेक्चरर एसोसिएशन, हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ और हरियाणा प्राथमिक शिक्षक संघ का कहना है कि सरकारी खजाने से जितने कर्मचारियों को वेतन मिलता है, उन सभी के बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ने चाहिए। जब अफसरों, शिक्षकों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ेंगे, तभी सुधार हो सकेगा।
'कॉमन स्कूल सिस्टम लागू हो' 
अध्यापक नेता दीपक गोस्वामी कहते हैं विदेशों की तरह कॉमन स्कूल सिस्टम लागू होना चाहिए। सभी बच्चे एक जैसी व्यवस्था में पढ़ेंगे तो व्यवस्था को सुधारने के प्रयास सभी करेंगे। इससे शिक्षा की गुणवत्ता भी बढ़ेगी और टीचर की जवाबदेही भी निश्चित हो जाएगी, जबकि अब टीचरों से कोई पूछने वाला नहीं है। 
सरकारी नौकरी सबको चाहिए, पर बच्चा निजी स्कूल में पढ़ाएंगे: संघ 

हरियाणा स्कूल लेक्चरर एसो. के जिला प्रधान बीर सिंह राणा, हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के प्रदेश सचिव कृष्ण कुमार निर्माण हरियाणा प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश महासचिव दीपक गोस्वामी ने कहा कि सरकारी नौकरी सभी को चाहिए, लेकिन खुद के बच्चों को निजी स्कूलों में ही पढ़ाना चाहते हैं। यह दोहरा रवैया क्यों? क्यों खुद एक सरकारी टीचर अपने ही स्कूल में अपने बच्चे नहीं पढ़ाना चाहता है। तीन दशक पहले अध्यापक अपने बच्चों को अपने ही स्कूल में पढ़ाना पसंद करता था।                                                                            db

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