उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय में शुरू हुए चार साल के स्नातक पाठ्यक्रम में हस्तक्षेप करने में बचते हुए कहा कि वह दृष्टि बाधित छात्रों के लिए सभी सुविधाएं सुनश्चित करने के बारे में निर्देश देगा।
न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति दीपक मिर्शा की खंडपीठ ने कहा कि यह नीतिगत मसले हैं और इनमें न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। लेकिन न्यायालय ने दृष्टिबाधित छात्रों को उपलब्ध करायी जाने वाली सुविधाओं के बारे में विश्वविद्यालय को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। दृष्टिबाधित छात्रों का आरोप है कि पाठ्यक्रम तैयार करते समय विश्वविद्यालय ने उनके हितों को ध्यान में नहीं रखा। न्यायाधीशों ने विश्वविद्यालय से कहा, ‘इस मसले पर गौर करें और उनके लिए उपलब्ध सुविधाओं के बारे में हलफनामा दाखिल करें। न्यायालय इस मामले में अब 29 मई को आगे विचार करेगा। न्यायालय ने गैर सरकारी संगठन संभावना की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस कार्यक्रम के पहले वर्ष में फाउण्डेशन पाठ्यक्रम की अनिवार्यताओं को दृष्टिबाधित छात्र पूरा नहीं कर सकेंगे क्योंकि यह 11 पाठ्यक्रमों का गुच्छा है जिसमें बिल्डिंग मैथमेटिकल एबिलिटी और साइंस एंड लाइफ अनिवार्य है। इस पंजीकृत संस्था का आरोप है कि यदि मौजूदा स्वरूप में चार साल का स्नातक पाठ्यक्रम लागू किया गया तो दृष्टिबाधित छात्रों को इससे अपूर्णीय क्षति होगी क्योंकि वे मुख्य धारा की शिक्षा प्रणाली में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। ...HB
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