चंडीगढ़ : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि नौकरी
से डिसमिस करने पर भी कर्मचारी की लीव एनकैशमेंट को नहीं रोका जा सकता।
जस्टिस राजीव नारायण रैना ने फैसले में कहा कि लीव एनकैशमेंट सेलरी का
हिस्सा है जिसे कर्मचारी को डिसमिस करने पर भी रोक नहीं सकते। यही नहीं लीव
एनकैशमेंट का भुगतान देरी से करने पर बकाया राशि पर ब्याज भी कर्मचारी को
देना होगा। हाईकोर्ट ने उस फैसले को खारिज करने के निर्देश दिए जिसमें
कर्मचारी के लीव एनकैशमेंट के लाभ रोक दिए गए थे। हाईकोर्ट ने कहा कि यह
कानून की अनदेखी व मनमाना रवैया है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
हरियाणा सरकार के कर्मचारी धीर चंद की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया कि
उसके लीव एनकैशमेंट के लाभ जारी नहीं किए जा रहे। ट्रायल कोर्ट से
भ्रष्टाचार के मामले में आरोप तय होने और सजा सुनाए जाने के बाद उनके लाभ
रोक दिए गए। जस्टिस रैना ने फैसले में कहा कि लीव एनकैशमेंट उन छुट्टियों
का वेतन है जो नौकरी के दौरान कर्मचारी ने काम के दौरान कमाए। कर्मचारी को
प्रोत्साहित करने के लिए यह लाभ दिए जाते हैं। यह सेलरी का हिस्सा है जिसे
रोका नहीं जा सकता। हाईकोर्ट के फुल बेंच ने पंजाब स्टेट सिविल सप्लाई
कॉरपोरेशन लिमिटेड के मामले में कहा था कि आपराधिक अथवा विभागीय कार्रवाई
के दौरान लीव एनकैशमेंट का लाभ नहीं रोका जा सकता। मौजूदा मामले में
कर्मचारी को डिसमिस कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि लीव एनकैशमेंट जनरल
प्रोवीडेंट फंड की तरह है जो डिसमिस किए जाने पर भी रोका नहीं जा सकता।
राशि का भुगतान न हुआ तो कर्मचारी देरी से भुगतान पर ब्याज का भी हकदार है।
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