पानीपत : हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी ने सोमवार को दसवीं कक्षा का परिणाम जारी कर दिया है। इस बार का परिणाम पिछले वर्ष की अपेक्षा 0.66 प्रतिशत सुधरा है। इसके बावजूद प्राइवेट स्कूलों और सरकारी स्कूलों के परिणाम का मध्य का दायरा हर वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। पिछले वर्ष सरकारी स्कूलों और निजी स्कूलों के परिणाम में 14.63 फीसदी का अंतर था, जो इस बार 0.86 फीसदी बढकर 15.49 हो गया है।
बोर्ड का ओवरऑल परिणाम सुधरा है। इसके बावजूद इस गेप
का बढ़ना सरकार के लिए काफी चिंता का विषय है। यह स्थिति तब है, जब सरकार
हर साल प्रति बच्चा 35 हजार से 38 हजार हजार तक खर्च कर रही है। इतना बड़ा
खर्च करने के बावजूद सरकारी स्कूलों का परिणाम निजी स्कूलों के आसपास भी
नहीं आ रहा है। सरकार की तरफ से शिक्षा मंत्री और सीएम ने बोर्ड से परिणाम
का पूरा ब्यौरा मांगा है, जिससे अध्ययन करके पता लगाया जा सके कि आखिर
दिक्कत कहां पर है।
दसवीं कक्षा में सरकारी स्कूलों और निजी स्कूलों के
मध्य बढ़ रहे अंतर की पड़ताल करने में सामने आया है कि केवल खर्च हो रहा है,
संसाधनों की अभी कमी है। स्कूलों में स्टाफ व अध्यापक पूरे नहीं हैं। अन्य
कार्य करने के लिए स्टाफ अधूरा है। इसके चलते जो अध्यापक हैं, वो अतिरिक्त
कार्यों में ही लगे रहते हैं। इससे अध्यापकों के पास बच्चों को पढ़ाने के
लिए समय नहीं रहता। रिटायर्ड प्रिंसिपल रामजीदास धीमान ने बताया कि स्कूलों
में टीचर्स पर विभिन्न योजनाओं का बोझ डाला जा रहा है। सोनीपत के फरमाणा
गांव में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में ड्राइंग टीचर न होने के कारण
पीटीआई टीचर जोगेंद्र मलिक ने छात्रों को ड्राइंग भी सिखाई। जिससे सभी 32
बच्चे ड्राइंग टीचर न होने के बावजूद पास हो गए। राजकीय सीनियर सेकेंडरी
स्कूल लोहारी अन्य स्कूलों के लिए रोल मॉडल बना है। संघर्ष करके जरूरत की
चीजें जोड़ी और एक-दूसरे से तालमेल बनाकर बच्चों को पढ़ाया तो 12वीं का
परीक्षा परिणाम 100 प्रतिशत और 10वीं का परिणाम 97.4 प्रतिशत तक पहुंचा
दिया। प्रिंसिपल अनिता गर्ग व लेक्चरर नरेंद्र मान ने बताया कि हर कक्षा
में विद्यार्थियों काे पढ़ाने के लिए स्कूल में बिजली नहीं होती थी। इसके
लिए सोलर सिस्टम लगाया। हिसार के अग्रोहा के अारोही स्कूल का रिजल्ट भी
टीचरों की कमी के बावजूद 100 प्रतिशत रहा है। सभी 31 बच्चे पास हो गए।
शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा से सीधी बात
* हरियाणा का परीक्षा परिणाम इतना खराब क्यों है?
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पिछली सरकारें अपनी कमियों को छुपाने के लिए बच्चों को ग्रेस देकर परीक्षा
परिणाम के प्रतिशत को बढ़ाती रही हैं। यह बच्चों के साथ धोखा था। इस बार
बच्चों ने जितनी पढ़ाई की है, उसको उसकी हिसाब से अंक मिले हैं। यह बिना
ग्रेस का वास्तविक रिजल्ट है।
* सरकारी स्कूलों का रिजल्ट प्राइवेट की तुलना में और खराब हुआ है, क्यों?
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प्राइवेट स्कूलों का सरकारी स्कूलों के खराब परीक्षा परिणाम के लिए स्वयं
सरकारी स्कूल के अध्यापक जिम्मेदार हैं। प्रदेश का युवा नौकरी तो सरकारी
स्कूल में चाहता है, लेकिन अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता है।
यदि अध्यापक अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाएं तो रिजल्ट सुधर जाएगा।
* व्यापक पैमाने पर नकल की तस्वीरें सामने आने के बावजूद ये स्थिति क्यों है?
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परीक्षाओं को नकल रहित करवाने के प्रदेश सरकार व बोर्ड द्वारा हर संभव
प्रयास किए गए थे। इसी का परिणाम तो है कि नकलची पास नहीं हुए। जिन सेंटरों
पर नकल की शिकायत आई थी, उन्हें तुरंत बदला ही नहीं गया, अपितु वहां सख्ती
भी की गई।
* सुधार के क्या प्रयास करेंगे?
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सरकारी स्कूलों में गरीब तबके के बच्चे पढ़ते हैं। बेसिक तौर पर उन्हें
अतिरिक्त कक्षाओं की जरूरत रहती है। इसी के चलते उनका प्रयास रहेगा की इस
बार ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान खासकर बोर्ड कक्षाओं में पढ़ने वाले
बच्चों के लिए अतिरिक्त कक्षाओं की व्यवस्था करवाई जाएगी।
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