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Friday 5 February 2016

14 यूनिवर्सिटी की छात्राओं ने उठाई 'पिंजरा तोड़'आवाज

** डीयू, जेएनयू, जामिया मिलिया समेत अन्य विवि शामिल 
नई दिल्ली : यूनिवर्सिटी हमारी बन गई खाप, बाप रे बाप! झूठी सुरक्षा की खोल दे पोल, पिंजरा तोड़ पिंजरा तोड़! चलो महिलाओं की स्वतंत्रता की ओर, पिंजरा तोड़, पिंजरा तोड़! कैद से समझौता करना छोड़! पिंजरा तोड़, पिंजरा तोड़! 
दिल्ली यूनिवर्सिटी के होस्टल के बाहर ये नारे रात के दो बजे गूंज रहे थे। नारे लगाने वाले इस ग्रुप में शामिल थीं 10-15 लड़कियां। कुछ देर होस्टल कैंपस का चक्कर लगाने के बाद सब ढाबानुमा कैंटीन के पास आकर बैठ जाती हैं। उन लड़कियों में सबसे आगे चल रहीं देवांगना कलिता कहती हैं- 'पहले यहां दिन में बैठने पर भी लड़के उन्हें घूरते थे। अब आधी रात को भी हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं।' 
 ये 'पिंजरा तोड़' अभियान से जुड़ी लड़कियां हैं। इनकी मांग है कि सुरक्षा के नाम पर इनके साथ दोहरा बर्ताव हो। मूवमेंट ने 100 शिकायतों वाली 16000 शब्दों की गोपनीय रिपोर्ट दिल्ली महिला आयोग को सौंपी है। इस पर शुक्रवार को सुनवाई होनी है। देवांगना उन लड़कियों में शामिल हैं, जिन्होंने दिल्ली कैंपस में लड़कियों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ अभियान की शुरुआत की। नाम दिया 'पिंजरा तोड़'। यह अभियान डीयू, जेएनयू, जामिया मिलिया अंबेडकर यूनिवर्सिटी की छात्राओं ने पिछले साल अगस्त में शुरू किया था। देवांगना बताती हैं कि शाम 7 बजते ही लड़कियों के लिए हर जगह अघोषित कर्फ्यू लगा दिया जाता है। शेषपेज | 11 पर 
एककॉलेज इवेंट में हम मिले तो ये नाराजगी एक-दूसरे से शेअर की। फिर फेसबुक पेज बनाया और होस्टल्स, सड़कों, चौराहों पर आए दिन होने वाली रोक-टोक, भेदभाव और दोहरे बर्ताव की जानकारी देने लगे। धीरे-धीरे हमारा दायरा दिल्ली से निकलकर देशव्यापी होने लगा है। अब तक 14 यूनिवर्सिटी की लड़कियां शामिल हो चुकी हैं। समस्याएं बताने वालों में मुंबई, हैदराबाद, भोपाल, कोटा जैसे शहर की लड़कियां भी हैं। देवांगना कहती हैं कि होस्टल हम लड़कियों के लिए जेल बन गया है। कायदे-कानून ऐसे कि जेल में भी हों। शाम के बाद हम बाहर नहीं निकल सकते। फिर कोई इमरजेंसी ही क्यों हो। ना-नुकुर की तो कैरेक्टर पर सवाल उठाया जाता है। सीसीटीवी का इस्तेमाल सिक्योरिटी की जगह सर्विलियेंस के लिए हो रहा। मूवमेंट का मानना है लड़कियों की सुरक्षा सीसीटीवी या पीसीआर वैन से नहीं हो सकती। अगर ज्यादा महिलाएं रात को सड़कों पर निकलेंगी तो अपने आप सुरक्षित महसूस करेंगी। देवांगना बताती हैं होस्टल में रहकर वॉर्डन से बैर मुश्किल है। इसलिए सब काम छिपके करना होता है। रात 2 बजे से तड़के 4 बजे के बीच पर्चे बांटने और कैंपस में पोस्टर लगाने का काम होता है।
शिकायतें: 

  • पांच मिनट भी लेट हुए तो मिलती है सजा 
  • पैसे की जरूरत है। पार्ट टाइम जॉब मिल गया है। होस्टल से बाहर जाने नहीं देते। 
  • मैं एक दिन बारिश में भीग गई। ऊपर से ट्रैफिक जाम। होस्टल लौटने के समय से 5 मिनट देरी से पहुंची तो सजा दी गई। 
  • वॉर्डन को छोटे कपड़ों, मेकअप से प्रॉब्लम है। कैरेक्टर पर सवाल उठाती है। 
  • हमें रात को होस्टल की छत पर या लॉन में वॉक और पढ़ने की छूट मिले। 
  • वाॅर्डन बाहर से ताला लगा देती है। पिछले साल भूकंप आया तो हम फंसे रहे। 
  • लाइब्रेरी रात 12 बजे तक खुलती है। लड़के पढ़ते हैं, हम होस्टल में रहते हैं।                                              db

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