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Saturday, 2 September 2017

बेटी के जन्म पर 10 दिन छुट्‌टी ली, स्कूल ने नौकरी से निकाला, एक साल तक लड़ी लड़ाई

** जिद करो दुनिया बदलो** 

** हाईकोर्ट ने कहा- जिस तारीख से हटाया, उस दिन से निरंतर वेतन भी देने के आदेश 
** अफसर टरका रहे थे, लेकिन मैंने ठान लिया था कि लडूंगी और जीतूंगी 
** सभी संविदाकर्मियों को दिया जाए मातृत्व अवकाश
** अभी कई विभागों में नहीं मिलता है मातृत्व अवकाश
** कोर्ट के फैसले से प्रदेश की एकलाख महिलासंविदाकर्मियों को भी फायदा
भोपाल : मुरैना जिले के सबलगढ़ के झुंडपुरा कस्तूरबा गांधी स्कूल की संविदा शिक्षक सुनीता डांडोतिया ने मार्च 2016 में बेटी कोे जन्म दिया। इसके 10 दिन बाद ड्यूटी पर गईं तो कह दिया गया कि आप छुट्‌टी नहीं ले सकतीं, आपकी नौकरी गई। बड़े अधिकारियों से मिल लो। 10 दिन की बच्ची को लेकर सुनीता अफसरों के चक्कर काटती रहीं। लेकिन न्याय नहीं मिला। आखिर उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली। करीब एक साल की लड़ाई के बाद हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने उन्हें ज्वाइन कराने के साथ ही जिस तारीख से हटाया, उसी तारीख से निरंतर वेतन देने के आदेश दिए। इसके साथ ही चीफ सेक्रेटरी को आदेश दिया कि सभी विभागों की महिला संविदा कर्मचारियों को प्रसूति अवकाश दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि चीफ सेक्रेटरी तय करें कि प्रदेश के सभी सरकारी विभागों, अर्द्धशासकीय दफ्तरों, निगम-मंडलों में कार्यरत महिला संविदा कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश लेने पर नौकरी से नहीं हटाया जाए। हाईकोर्ट के इस फैसले का लाभ प्रदेश की करीब एक लाख संविदा महिला कर्मचारियों को मिलेगा। 
मार्च 2016 में मैंने बेटी को जन्म दिया। 10 दिन बाद स्कूल पहुंची तो वार्डन ने कहा-आप जिला परियोजना समन्वयक एमके तोमर के पास जाएं। मैं तोमर सर के पास गई तो उन्होंने ज्वाइन कराने से मना कर दिया। तर्क दिया कि बच्ची छोटी है। दो-तीन दिन वहीं चक्कर काटती रही। फिर कलेक्टर विनोद शर्मा के पास गई। उन्होंने डीपीसी को सिफारिश की कि मुझे ज्वाइन कराया जाए। डीपीसी ने फिर भी ज्वाइन नहीं कराया। परेशान होकर मैं भोपाल आई। यहां तत्कालीन आयुक्त राज्य शिक्षा केंद्र के पास गई, उन्हें आवेदन दिया। सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद तय किया कि सिस्टम के खिलाफ लड़ूंगी और जीतूंगी। भोपाल में मप्र संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष रमेश राठौर से मिली। उनकी मदद से होकर हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में तीन महीने पहले याचिका दायर की थी। अदालत से ही मुझे न्याय मिला।

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