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Monday 18 November 2013

स्कूल तो जा रहे पर पढ़ने से कतरा रहे


चंडीगढ़ : प्रदेश सरकार मिड डे मील और छात्रवृत्ति योजनाओं के जरिए बच्चों को स्कूलों तक पहुंचाने में तो कामयाब हो गई, लेकिन शैक्षणिक माहौल के अभाव में इन बच्चों की पढ़ने-लिखने में खास दिलचस्पी नहीं है। सबसे अधिक समस्या पहली व दूसरी क्लास के बच्चों को लेकर आ रही है। ज्यादातर को अक्षरों की पहचान ही नहीं है। 
हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद ने इसे गंभीरता से लिया है। खासतौर से कक्षा एक और दो के बच्चों में पढ़ाई की आदत विकसित करने के लिए अरली रीडिंग (शुरुआती शिक्षा) कार्यक्रम चालू किया जा रहा है। इसके तहत डेढ़ दर्जन बिंदू तैयार किए गए हैं, जिन्हें लागू करने के लिए जिला कार्यक्रम संयोजकों के पास भेजा जा चुका है। इसे लागू कर उन्हें जल्दी ही अपनी रिपोर्ट देनी होगी। प्रदेश में पुरुषों की साक्षरता दर 85.38 और महिलाओं की साक्षरता दर 66.79 प्रतिशत है। स्कूली बच्चों का ड्राप आउट भी 22 से घटकर आठ पर आ गया है, लेकिन बच्चे पढ़-लिख नहीं रहे। कक्षा एक के 18.6 प्रतिशत बच्चों को बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है। 42.4 प्रतिशत बच्चों को ही अक्षरों की पहचान है। 21.9 प्रतिशत बच्चों को शब्द पढ़ने नहीं आते। 8.5 प्रतिशत बच्चे अपनी किताब नहीं पढ़ सकते। 
कक्षा दो के बच्चों की भी यही स्थिति है। 5.9 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें कोई जानकारी नहीं है, जबकि 25.6 प्रतिशत बच्चों को अक्षरों की पहचान है। 33.2 प्रतिशत बच्चे शब्द नहीं पहचान पाते, जबकि 16.1 प्रतिशत बच्चे किताब पढ़ने में सक्षम नहीं हैं। शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल का कहना है कि स्कूली माहौल में बदलाव तथा बच्चों की पढ़ाई के उद्देश्य से यह परिवर्तन किए जा रहे हैं, जिसके अच्छे रिजल्ट आएंगे।
शुरुआती शिक्षा प्रणाली को लागू करने का यह होगा एजेंडा
  • शिक्षक पूरी कक्षा को वर्गो में बांटकर छात्र केंद्रित गतिविधियां अपनाएं। 
  • सप्ताह में 60 प्रतिशत समय भाषा को सिखाने पर लगाएं। 
  • कहानियों के माध्यम से पढ़ना, लिखना, बोलना और याद करना सिखाएं। 
  • लिखित एवं मौखिक भाषा में समन्वय कायम करें। 
  • बच्चों को कहानी की पुस्तकें उपलब्ध कराएं। 
  • क्लास रूम में चार्ट लगाएं। उन्हें अक्षरों की पहचान कराएं। 
  • शिक्षक बातों-बातों में बच्चों से सवाल करें। 
  • बच्चों का मूल्यांकन करें। 
  • बच्चों की पढ़ाई में परिवारों की भागीदारी सुनिश्चित करें। 
  • रीडिंग कार्नर बनाएं। छोटी मेज व मैट की व्यवस्था कराएं। 
  • लिखने के लिए चाक व वाल बोर्ड का इंतजाम करें। 
  • एक पुस्तक की कई प्रतियां उपलब्ध हों, ताकि एक साथ कई बच्चे पढ़ सकें। 
  • ग्रुप डिस्कशन कराएं। 
  • बच्चों को अकेले पढ़ने की सुविधा भी दें। 
  • शिक्षक ऊंची आवाज में बोलें, बच्चों से सुनें और उन्हें लिखने को कहें।   dj


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