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Thursday, 7 June 2018

200 सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों का परिणाम रहा जीरो से दस फीसद

** दसवीं कक्षा में स्थिति सर्वाधिक चिंताजनक, शिक्षा मंत्री बोले- सुधार की है गुंजायश 
भिवानी : प्रदेश के 200 से अधिक सरकारी व गैर सरकारी स्कूलों का परीक्षा परिणाम जीरो से 10 फीसद रहा है। इनमें सरकारी स्कूलों की संख्या निजी स्कूलों की तुलना में करीब दो गुना से अधिक है। जाहिर है कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर दसवीं कक्षा में आधे से ज्यादा छात्रों के फेल होने से ही सवाल उठने शुरू हो गए थे। हालांकि यहां स्पष्ट है कि पिछले तीन वर्षो से हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने मोडरेशन की नीति को समाप्त कर वास्तविक रिजल्ट देना शुरू किया हुआ है। 
यही वजह है कि फेल होने वाले छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। प्रदेश के शिक्षा मंत्री भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि अभी भी शिक्षा व्यवस्था में सुधार की बड़ी गुंजाइश है। जिन स्कूलों का परीक्षा परिणाम कम है, वहां पर अवकाश के दौरान विद्यार्थियों को रेमेडियल कोचिंग दिलाई जाएगी। बोर्ड परीक्षा परिणामों का आंकलन करें तो दसवीं कक्षा में स्थिति ज्यादा चिंताजनक है। इसका कारण यह भी माना जा रहा है कि आठवीं कक्षा तक किसी छात्र को फेल नहीं किया जाता है। ऐसे में बगैर पढ़े छात्र सीधे दसवीं कक्षा में प्रवेश कर जाते हैं और यहां आकर बोर्ड परीक्षा का सामना करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है।
"आरटीई के कारण आठवीं कक्षा तक फेल करने का प्रावधान नहीं है। जैसे ही बच्चे दसवीं में बोर्ड की परीक्षा को फेस करते हैं तो फेल हो जाते हैं। सुधार के लिए जरूरी है कि सभी स्कूलों में पढ़ने व पढ़ाने का माहौल हो।"-- डा. जगबीर सिंह, चेयरमैन, हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड।
"शिक्षकों की कमी परीक्षा परिणाम गिरने का बड़ा कारण है। 1250 में से 891 हेड मास्टर और 50 फीसद पद साइंस व एसएस शिक्षक के पद खाली पड़े हैं। दूसरा कारण शिक्षक से गैर शैक्षिक कार्य लेना। तीसरा सरकार की इच्छाशक्ति सरकारी स्कूलों में सुधार की बजाय निजीकरण को बढ़ावा देने की है।"-- वजीर सिंह, हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के पूर्व राज्य प्रधान एवं प्रदेश प्रेस प्रवक्ता।
"जब बच्चे बोर्ड की क्लास में पहुंचते हैं, तब सरकारी स्कूलों की पोल खुलती है। पता लगता है कि कई स्कूलों के बच्चों को कुछ आता ही नहीं है। यहां तक कि कुछ बच्चे तो ऐसे भी होते हैं, जिन्हें हिंदी पढ़ने में भी मुश्किल होती है। इससे पहले जब वो पहली कक्षा से नौवीं तक पास कर जाते हैं तब तक उन पर कोई ध्यान नहीं देता। मतलब तब तक टीचर्स ने उसे केवल पास करके अपनी कक्षा का रिजल्ट बेहतर करना ही मुनासिब समझा, चाहे बच्चे को कुछ आए या नहीं। यहीं दिक्कत आती है। इसलिए टीचर्स की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।"--   दिनेश नागपाल, करियर काउंसलर।
"इसके लिए शिक्षक के साथ बच्चे, उनके अभिभावक और समाज भी जिम्मेदार है। अगर बच्चा दसवीं में भी अच्छे से पढ़ने लायक नहीं बना है तो वह पहली से दसवीं तक कैसे पहुंच गया ये सवाल है, टीचर्स ने केवल उन्हें पास ही किया है। लेकिन इसके लिए केवल टीचर्स को ही दोष नहीं दिया जा सकता।"-- डा. संगीता सैनी, राष्ट्रीय एवं स्टेट अवार्डी अध्यापिका।

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