** हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार की नियमितीकरण नीति को किया खारिज
** कोर्ट की टिप्पणी : किसी को अस्थायी नियुक्ति पर लंबे समय तक काम करने से नियमित किए जाने का हक नहीं मिल जाता
** रेगुलराइजेशन नीति सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ
** आदेश से प्रदेश के सरकारी विभागों में वर्षो तक नौकरी करने के बाद नियमित हुए हजारों कर्मचारियों की नौकरी पर संकट
** नौकरी गंवाने वाले कर्मचारियों को मिलेगी आयु में छूट
चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कर्मचारियों को नियमित किए जाने
की हरियाणा सरकार की नीति को निरस्त कर दिया है। हाई कोर्ट के इस आदेश से
प्रदेश के सरकारी विभागों में वर्षो तक नौकरी करने के बाद नियमित हुए
हजारों कर्मचारियों की नौकरी पर संकट आ गया है। वर्ष 2014 में तत्कालीन
कांग्रेस सरकार ने लंबे समय तक काम कर चुके कच्चे कर्मचारियों को नियमित
करने के लिए यह नीति बनाई थी।
जस्टिस राजीव बिंदल और जस्टिस अनिल
क्षेत्रपाल की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि कोई भी व्यक्ति अस्थायी
नियुक्ति पर लंबे समय तक काम करने के बाद नियमित सेवा का हक नहीं प्राप्त
कर लेता। हाई कोर्ट ने नीति को निरस्त करने के कारण खाली होने वाले पदों पर
हरियाणा सरकार को छह महीने में नियमित कर्मचारियों की भर्ती करने के लिए
कहा है। आदेश के मुताबिक रेगुलराइजेशन नीति के तहत नियमित हुए कर्मचारी अब
अपने पदों पर छह महीने से ज्यादा काम नहीं कर पाएंगे।
नौकरी गंवाने वाले
कर्मचारियों को मिलेगी आयु में छूट
कोर्ट ने इस आदेश की वजह से नौकरी
गंवाने वाले कर्मचारियों को राहत देते हुए उन्हें नई भर्ती में उनके
सेवाकाल के बराबर उम्र सीमा में छूट दिए जाने के आदेश दिए हैं।
हुड्डा
सरकार की नीति को अपनाया था मनोहर सरकार ने
भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार
ने पिछले विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले कर्मचारियों को नियमित करने के
लिए रेगुलराइजेशन नीतिं बनाई थी। राज्य की वर्तमान मनोहर लाल सरकार ने
शुरुआती दौर में तो इस नीति को लागू नहीं किया, लेकिन जून 2015 में लागू कर
इसके तहत अस्थायी कर्मचारियों को नियमित नियुक्तियां देनी शुरू कर दी।
नियमित कर्मचारियों पर नहीं
होगा असर
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस आदेश का उन नियुक्तियों पर
कोई असर नहीं होगा, जिनकी सेवाएं सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के आदेश के
बाद नियमित की गई है।
बार-बार नहीं मिल सकती ऐसी छूट
हाई कोर्ट ने हरियाणा
सरकार की रेगुलराइजेशन नीति पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि हरियाणा सरकार
ने वर्ष 2003 में भी कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने के लिए ऐसी ही नीति
में बनाई थी, जिसे तब एक बार का उपाय बताया गया था और भविष्य में कच्चे
कर्मचारियों की नियुक्ति पर रोक लगाने की बात कही गई थी। हाई कोर्ट ने कहा
कि भर्ती के नियमों को अपनाए बिना की जाने वाली अस्थायी नियुक्तियों को
बार-बार नियमित किए जाने की नीति को सही नहीं ठहराया जा सकता।
रेगुलराइजेशन नीति सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ
हाई कोर्ट ने 2014 की
रेगुलराइजेशन नीति को सुप्रीम कोर्ट द्वारा कर्नाटक सरकार बनाम उमादेवी और
कुछ अन्य केसों में अनियमित भर्तियों के संबंध में दी गई व्यवस्था की
अवहेलना बताया। सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश में आपातकालीन स्थितियों के अलावा
अनियमित भर्तियां करने को गैरकानूनी ठहरा चुका है। बावजूद इसके सरकारें
राजनीतिक हित साधने के लिए ऐसी नीतियों की आड़ लेती है।
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