** 18 जून 2014 की तीन साल की पॉलिसी में पक्के हुए पांच हजार कर्मियों की नौकरी पर खतरा
** 31 दिसंबर 2018 को 10 साल पूरा करने वाले 20 हजार कर्मी भी नहीं हो पाएंगे पक्का
** पॉलिसी के दायरे में करीब 14000 अतिथि अध्यापक, 3000 बिजली कर्मचारी और 3000 दूसरे विभागों के कर्मचारी आने वाले थे, लेकिन उनकी उम्मीदों पर अब पानी फिर गया है।
चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा पिछली हुड्डा सरकार के
कार्यकाल में बनी दो नियमितीकरण पॉलिसी रद कर दिए जाने से प्रदेश के करीब
55 हजार कर्मचारियों को तगड़ा झटका लगा है। इनमें करीब पांच हजार कर्मचारी
तो नियमितीकरण पॉलिसी के तहत पक्के हो चुके थे, जबकि करीब 20 हजार कर्मचारी
दिसंबर 20 को पक्के होने वाले थे। बाकी बचे करीब 30 हजार कर्मचारियों को
भी अब नियमितीकरण पॉलिसी का लाभ नहीं मिलेगा। हालांकि उनका पक्का होना अब
सरकार की इच्छा पर निर्भर हो गया है।
मनोहर सरकार चाहे तो वह कानून सम्मत
नई नियमितीकरण पॉलिसी तैयार कर सकती है, जिसकी संभावना बहुत कम है। राज्य
सरकार ने यदि हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ मजबूत पैरवी नहीं की तो करीब
5000 कर्मचारियों की नौकरी जाना तय है। साथ ही हाई कोर्ट ने मनोहर सरकार को
छह माह में नियमित भर्ती करने के निर्देश दिए हैं।
पिछली हुड्डा सरकार
ने पहली पॉलिसी जून 2014 को बनाई थी। इसमें प्रावधान किया गया था कि 30
जून 2014 को जिन कर्मचारियों को काम करते हुए तीन साल पूरे हो जाएंगे,
उन्हें पक्का किया जाएगा। इस पॉलिसी के दायरे में आने वाले करीब 5000
कर्मचारियों को पक्का किया गया था। हाई कोर्ट के फैसले से अब यह कर्मचारी
या तो फिर से कच्चे हो जाएंगे या फिर उनकी नौकरी जाएगी। नौकरी भी तभी बची
रहेगी, जब संबंधित विभाग में पद खाली बचे होंगे। वहीं, हुड्डा सरकार
द्वारा दूसरी नियमितीकरण पॉलिसी 7 जुलाई 2014 को बनाई गई। इसके तहत
प्रावधान किया गया कि दिसंबर 20 को जिन कर्मचारियों को काम करते हुए 10
साल पूरे हो जाएंगे, उन्हें नियमित कर दिया जाएगा। इस पॉलिसी के दायरे में
करीब 14000 अतिथि अध्यापक, 3000 बिजली कर्मचारी और 3000 दूसरे विभागों के
कर्मचारी आने वाले थे, लेकिन उनकी उम्मीदों पर अब पानी फिर गया है। इसके
अलावा 30 हजार अन्य कच्चे कर्मचारियों को भी अब अपने पक्का होने की आस नजर
नहीं आ रही है।
सरकार के पास अब यह विकल्प
हरियाणा सरकार चाहे तो अब कच्चे कर्मचारियों के हक में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मजबूत पैरवी कर सकती है। हुड्डा सरकार के कार्यकाल की दोनों पॉलिसी पर पिछले दो साल से स्टे लगा हुआ था। इसलिए कच्चे कर्मचारियों के नियमित होने की प्रक्रिया भी थमी हुई थी। राज्य सरकार के पास विकल्प है कि वह या तो कर्नाटक सरकार बनाम उमा देवी के केस में 10 अप्रैल 2006 को आए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के आधार पर कानून सम्मत नियमितीकरण पॉलिसी बनाए या फिर कच्चे कर्मचारियों की नौकरी बचाने के लिए उन्हें विभिन्न पदों पर अथवा पक्की भर्ती में आयु की छूट देते हुए एडजस्ट करे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर पिछली सरकार वर्ष 2011 में नियमितीकरण पॉलिसी बना चुकी है, जिसके तहत हजारों कर्मचारी पहले नियमित हो चुके हैं। इसी तरह की पॉलिसी अब दोबारा बनाई जा सकती है।
खर्चा बचाने को पक्की भर्तियों से परहेज करती रही सरकारें
चंडीगढ़ : हरियाणा में सरकार चाहे किसी भी दल की रही हो, लेकिन कोई भी
सरकार कर्मचारियों की पक्की भर्ती करने को लेकर गंभीर नहीं है। सरकारी खर्च
बचाने और ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने की मंशा से लंबे समय से राज्य में
कच्चे कर्मचारियों की भर्ती की जा रही है। फिलहाल भी पौने दो लाख स्वीकृत
पद ऐसे हैं, जिन पर पक्के कर्मचारियों की जरूरत है मगर नियमित भर्ती की
प्रक्रिया बेहद धीमी है। 1हरियाणा में फिलहाल करीब पौने तीन लाख सरकारी
कर्मचारी काम कर रहे हैं। 55 हजार कच्चे कर्मचारी अलग से हैं। राज्य में
स्वीकृत पदों की संख्या साढ़े चार लाख है, जबकि जरूरत सात लाख कर्मचारियों
की है। वहीं हर साल करीब 5 हजार कर्मचारी रिटायर होते हैं और इतने ही नए
भर्ती होते हैं, जिस कारण सरकारी विभागों में सिस्टम पटरी पर नहीं आ रहा
है। कर्नाटक बनाम उमा देवी के केस में सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल 2006 को
अपने निर्णय में भविष्य में कच्ची भर्तियों पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश
दिए थे। सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों को हर सरकार ने अनदेखा किया और
नियमित की बजाय कच्चे कर्मचारियों की भर्तियां की।
मजबूत पैरवी करे सरकार
: संघ
सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा ने हाई कोर्ट के निर्णय को कर्मचारियों
के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। संघ के राज्य प्रधान धर्मबीर सिंह फौगाट व
महासचिव सुभाष लांबा ने हरियाणा सरकार से इस निर्णय के खिलाफ हायर बेंच
में अपील करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि सरकार हाई कोर्ट के निर्णय
पर स्टे लेने के लिए आवश्यक कदम उठाए, ताकि करीब पांच हजार कर्मचारियों के
रोजगार को बचाया जा सके। सुभाष लांबा ने कहा कि हरियाणा सरकार की कमजोर
पैरवी के कारण नीतियां रद हुई हैं। संघ ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री से
मजबूत पैरवी की मांग भी की थी।
आंकड़ों का खेल
जरूरत 7 लाख कर्मचारियों की
स्वीकृत पद 4.5 लाख
काम कर रहे 2.75 लाख
कच्चे कर्मचारी 55 हजार
हर साल रिटायरमेंट 5 हजार
हर साल नई नियुक्तियां 5 हजार
सरकार ने की
मजबूत पैरवी मगर पॉलिसी में ही खामियां : मनोहर
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने
हाई कोर्ट के फैसले पर राय जाहिर करते हुए पिछली हुड्डा सरकार को लपेटे में
लिया है। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार की गलत नीतियों ने बहुत से लोगों की
जिंदगी खराब कर दी है। मैं इस मसले को हादसा ही कहूंगा, क्योंकि पिछली
सरकार की गलत नीतियों की सजा कर्मचारियों को भुगतनी पड़ रही है। मनोहर लाल
का कहना है कि कोई भी पॉलिसी सोच समझकर बनाई जाती है। सरकार ने हाई कोर्ट
में कच्चे कर्मचारियों के हक में मजबूत पैरवी की थी, लेकिन पॉलिसी में ही
खामियां थी। उन्होंने कहा कि हुड्डा सरकार इस पूरे मामले की गुनाहगार है।
उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले का अध्ययन करने के बाद ही आगे कोई
निर्णय लिया जाएगा।
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