सरकारी नीतियों को मखौल बनाने का खामियाजा अतिथि अध्यापकों को भुगतना पड़ रहा है। 719 गेस्ट टीचरों की आखिरी उम्मीद भी उस समय टूट गई जब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बर्खास्तगी के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने माना कि भर्ती में नियमों का सरेआम उल्लंघन हुआ, प्रशासनिक नियमों से खिलवाड़ किया गया और प्रक्रिया को मजाक बना दिया गया। अब बारी उन अधिकारियों की है जिन्होंने नियमों को तोड़-मरोड़ कर चहेतों पर मेहरबानी लुटाई। तय लग रहा है कि संबंधित बीईओ और डीईओ पर गाज गिरेगी। याचिका खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को व्यापक संदर्भो में देखे जाने की आवश्यकता है। इससे सरकार, विभाग और प्रक्रिया, तीनों को कटघरे में किया गया है। यानी सर्वोच्च अदालत में भी साबित हो गया कि सरकार व शिक्षा विभाग में नीतियों का अवैध, नाजायज तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, खासतौर पर इन 719 गेस्ट टीचरों के मामले में किसी मर्यादा, परंपरा या आचरण का पालन नहीं किया गया। प्रशासन में सियासत के घालमेल से अनेक विसंगतियां पैदा हो रही हैं। तात्कालिक वाहवाही लूटने के लिए लोक लुभावन नारे देने की परंपरा काफी समृद्ध हो चुकी, साथ ही उस घोषणा को अमल में लाने का चलन भी बढ़ा है।
आधारभूत तैयारी, विषय एवं प्रक्रिया के गहन अध्ययन के बिना आनन-फानन में नियुक्ति, पदोन्नति, स्थानांतरण के आदेश जारी किए जाते रहे। समय के साथ याचिकाएं कोर्ट में पहुंचती हैं तो तफ्तीश शुरू होती है और हकीकत सामने आती है, तब तक तीर कमान से निकल चुका होता है और चाह कर भी कोई कुछ नहीं कर सकता। पीड़ा ङोलनी पड़ती है उन लोगों को जो वर्तमान को ही भविष्य मानने की गलती कर बैठते हैं। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि गेस्ट टीचर की नियुक्ति में जो कमियां रहीं, उनकी पुनरावृत्ति किसी भी हालत में अन्य विभागों में न हो, सरकार की विश्वसनीयता और साख बचाने का यही उपाय बचा है कि नियुक्ति प्रक्रिया को पूर्ण पारदर्शी बनाया जाए। नियुक्ति प्रक्रिया के संचालन के लिए परिपक्व तंत्र विकसित होना चाहिए। सरकार को अन्य गेस्ट टीचरों के समायोजन के लिए भी ठोस, तार्किक और न्यायसंगत नीति-रणनीति की घोषणा करने में अधिक विलंब नहीं करना चाहिए। dj
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