हरियाणा में नौकरियों में भर्ती प्रक्रिया को साढ़ेसाती से छुटकारा मिलने की संभावना नहीं दिखाई दे रही। औद्योगिक सुरक्षा बल के बर्खास्त कर्मचारी आंदोलन कर सरकार को झकझोरने की कोशिश कर रहे हैं। पीटीआइ के 1800 पदों पर नियुक्ति रद हो चुकी, गेस्ट टीचरों पर सरकार को अदालत में मुंह की खानी पड़ी, पीजीटी व कई अन्य पदों पर नियुक्ति को अदालत में चुनौती मिल चुकी। कई मामलों में भर्ती प्रक्रिया में धांधली, अनियमितता की शिकायत हुई जो अदालत में साबित भी हो चुकी। इसी क्रम में अब सिविल जूनियर इंजीनियर के सौ पदों पर भर्ती विवादों में आ गई है। चयन के लिए मेरिट सूची बनाने के तरीके को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इन पदों पर भर्ती मामले के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगी। हाई कोर्ट में दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि चहेतों को लाभ देने के लिए हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग ने मेरिट लिस्ट बनाने के लिए जो तरीका अपनाया वह जारी विज्ञापन के खिलाफ था। इस वजह से योग्य उम्मीदवारों का चयन नहीं हो पाया। भर्ती प्रक्रिया पर बार-बार अंगुलियां उठना वास्तव में गंभीर चिंता का विषय है। इससे भी अधिक चिंतनीय पहलू यह है कि सरकार ने पिछली किसी गलती से सबक नहीं लिया और प्रक्रिया से खिलवाड़ होता रहा। नियमों की मनमानी व्याख्या करके तात्कालिक सरोकार पूरे करने की कोशिश की गई पर यह मंथन नहीं किया गया कि कानून के मापदंडों पर जवाबदेही कैसे तय होगी और उन लोगों की पीड़ा का हिसाब कैसे दिया जाएगा जो भर्ती प्रक्रिया की खामियों के कारण सड़क पर आ सकते हैं। भर्ती संबंधी निर्णय लगातार रद होने से सरकार की साख और विश्वसनीयता पर आंच आ रही है, यह सिलसिला तत्काल बंद होना चाहिए। भर्ती प्रक्रिया की तमाम कमी-कमजोरियों की गहन पड़ताल की जानी चाहिए। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि आधारभूत स्तर पर ऐसी खामियां हैं जिनकी वजह से सरकार की फजीहत हो रही है लेकिन उनके निराकरण पर पर्याप्त गंभीरता नहीं दिखाई जा रही। सौ जूनियर इंजीनियरों की भर्ती पर तलवार लटकने का सीधा अर्थ है कि सरकार को एक बार फिर असहज स्थिति से गुजरना होगा। भर्ती मानकों को आदर्श रूप देने के लिए गहन मंथन की जरूरत है, सभी दलों की इसमें सक्रिय सहभागिता होनी चाहिए। सबसे तेज गति से विकसित हो रहे राज्य में सुनिश्चित होना चाहिए कि भर्ती प्रक्रिया भंवर या भ्रम जाल न बने। djedtrl
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