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Saturday 6 June 2015

1 स्कूल, 2 टीचर, 3 बच्चे, फ्लॉप रहा समर क्लास का प्रयोग

अम्बाला : शिक्षा विभाग द्वारा सरकारी स्कूलों में किसी भी विषय में 50 फीसदी से ज्यादा फेल बच्चों के लिए गर्मी की छुट्टियों में सुबह 8 बजे से दोपहर दो बजे तक कक्षाएं लगाने का फरमान एक तरह से फ्लॉप हो गया है। एसी कमरों में बैठ कर फैसला लेने वाले शिक्षा विभाग के आला अधिकारी इस मौसम में गांवों में चिलचिलाती धूप व बच्चों के मूड का सही अंदाजा नहीं लगा सके।
अम्बाला के करीब एक दर्जन सरकारी हाई व हायर सेकेंडरी स्कूलों का दौरा करने पर सही तस्वीर सामने आयी। ज्यादातर स्कूलों में मजबूरी में अध्यापक तो आ गये, लेकिन बच्चों की तादाद एक हाथ की उंगलियों में गिनने लायक भी नहीं।
अम्बाला शहर राजकीय हाई स्कूल नंबर-7 में गणित विषय में 45 में से 40 बच्चों की विज्ञान व सामजिक शास्त्र में कम्पार्टमेंट आयी है। स्कूल में एक जून से स्कूल की मुखिया के आलावा एक और अध्यापिका भी आ रही हैं, लेकिन आने वाले बच्चों की तादाद केवल तीन है। अध्यापिकाओं ने हर बच्चे को घर संदेश भेजा, लेकिन पहले दिन 4 बच्चे ही आये और अगले दिन वे भी नहीं पहुंचे। कई स्कूलों में अध्यापक व अध्यापिकाएं सुबह आकर बैठते हैं और बिना कुछ करे धरे दोपहर बाद घर लौट जाते हैं।
अम्बाला से करीब 10 किलोमीटर दूर बलाना के राजकीय हाई स्कूल 10वीं व 12वीं के छात्रों की अच्छी खासी तादाद है, वहां भी अध्यापक सुबह से ही बच्चों के आने का इंतजार करते रहे हैं, लेकिन इक्का-दुक्के बच्चे ही आते हैं। एक स्कूल के मुख्याध्यापक का कहना है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी उनसे कह रहे हैं कि कुछ भी कर लो वाे स्कूल नहीं आयेंगे।
मुनादी तक करवा दी : 
एक अन्य राजकीय स्कूल के अध्यापक ने बताया कि 30 मई की शाम को उन्हें शिक्षा विभाग की ओर से एक तारीख को बच्चों की क्लासें लगाने की जानकारी मिली जबकि एक जून से ग्रीष्मावकाश शुरू हो गया था। इसके लिए गांव के मंदिरों, गुरुद्वारों में सूचनाएं चलवाईं व गांव में मुनादी भी करवाई, लेकिन दो-चार बच्चे ही आए।
फार्मूला सही नहीं : 
एक अध्यापक के मुताबिक किसी विषय में 50 फीसदी से ज्यादा बच्चों के लिए ही समर क्लासें लगाने का फैसला अजीबोंगरीब है। कुछ हाई स्कूल ऐसे हैं जहां मेट्रिक के कुल 10 बच्चे हैं और अलग-अलग विषयों में फेल हो जाने वाले चार बच्चों के लिए कई विषयों के अध्यापकों को आना पड़ रहा है, लेकिन कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जहां 10वीं में बच्चों की तादाद 60 से 70 तक है, लेकिन वहां किसी विषय में 51 फीसदी रिजल्ट आने के पीछे 49 फीसदी बच्चों की तादाद 30 से 35 तक बैठती है, लेकिन फॉर्मूला लागू न होने के चलते वहां क्लासें नहीं लगाई जा रही हैं।                                                               dt

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