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Friday 8 April 2016

दो शिक्षकों ने 5 साल में बदल दिया सरकारी स्कूल का स्तर, कैरीकुलम प्राइवेट जैसा, रिजल्ट 100%, कोई बच्चा थर्ड नहीं आता, एडमिशन के लिए मारामारी

** निजी स्कूलों की चकाचौंध को आईना दिखाता प्रयास... 
** 50 से ज्यादा बच्चे 10वीं और 12वीं के हर साल रहे मेरिट में, बिना ट्यूशन तैयारी करते हैं सभी 
** 500 से ज्यादा सरकारी कर्मियों और स्कूल स्टाफ के बच्चे पढ़ते हैं, प्रिंसिपल ने खुद की बेटी को यहीं पढ़ाया 
यमुनानगर : बिलासपुर का सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल। आज यहां 2200 बच्चे पढ़ रहे हैं। शायद प्रदेश के किसी भी सरकारी स्कूल से ज्यादा। ऐसी स्थिति में जब सरकारी विद्यालयों को हेय दृष्टि से देखा जा रहा है। तब यहां पिछले 5 वर्षों से रिजल्ट 100%। 10वीं और 12वीं में 50 से ज्यादा बच्चे हर साल मेरिट में रहे हैं। स्कूल स्टाफ समेत 500 से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों के बच्चे यहां पढ़ते हैं। प्रवेश के लिए मारामारी है। हो भी क्यों ना, यहां शिक्षक ईमानदार हैं। यदि कोई बच्चा बिना सूचना स्कूल नहीं आता तो शिक्षक उसके घर पहंुच जाते हैं। प्राइवेट स्कूलों की तरह बच्चों के लिए सप्ताह में दो तरह की ड्रेस, मंथली टेस्ट और पैरेंट्स मीटिंग। पिछले दो साल से यहां कोई बच्चा थर्ड नहीं आया। टेस्ट में किसी भी बच्चे का रिजल्ट खराब होने पर एक्सट्रा क्लास, प्रोजेक्टर पर मैथ, साइंस की क्लासेज ली जाती हैं। यहां की खास चीजें पढ़ने में जितनी अच्छी हैं उन्हें तैयार करने में उतना ही संघर्ष लगा है। यह संघर्ष है स्कूल की प्रिंसिपल सुमन बहमनी और प्राइमरी विंग के हेड टीचर सुधीर कुमार का। 
मॉडल स्कूल जगाधरी से पदोन्नत होकर मैं 2003 में बिलासपुर सीनियर सेकेंडरी स्कूल की प्रिसिंपल बनी। यहां रजिस्टर में 600 बच्चे दर्ज थे लेकिन आधे से ज्यादा गायब रहते थे। अव्यवस्था का आलम था। कई शिक्षकों ने अपनी जगह प्राइवेट टीचर लगा रखे थे। परीक्षा के दौरान जमकर नकल होती थी। शिक्षा की ऐसी दुर्दशा देखकर मन को ठेस लगी। स्कूल को सुधारने पर चिंतन शुरू किया। इसके लिए प्राइमरी विंग के हेड टीचर सुधीर कुमार से मिली। वह 1975 में यहीं से दसवीं थे, इसलिए उनका यहां से भावनात्मक लगाव था। सबसे पहले हमने रेगुलर आने वाले शिक्षकों को साथ लेकर बच्चों के घरों में जाना शुरू किया। लोग स्कूल में पढ़ाई होने के ताने मारते थे, लेकिन हमारा प्रयास जारी रहा। शिक्षक, छात्रों की दोनों टाइम अटेंडेंस अनिवार्य कर दी। ड्रेस कोड लागू किया। मोटीवेशन के लिए शिक्षकों के साथ रोज मीटिंग शुरू की। असर यह हुआ कि शिक्षकों की रुचि बढ़ी और धीरे-धीरे पंजीकृत बच्चे भी स्कूल आने लगे। यही देखकर सरकार ने वर्ष 2006-07 में इसे आदर्श स्कूल घोषित किया। अब 10 कमरों वाले स्कूल में 600 बच्चों के बैठने की समस्या थी। प्रशासन से गुहार लगाई, संतोषजनक जवाब नहीं मिला। फिर शिक्षकों के साथ समाजसेवियों से मिली और 25 कमरे बनवाए। प्रचार, प्रसार जारी रहा, बच्चों की संख्या बढ़ती गई। 2010 में संख्या 1500 पार कर गई। अब शिक्षा का स्तर सुधारने की चुनौती थी। संभ्रांत घरों से अच्छे बच्चे आएं इसलिए वर्ष 2012 में अपनी बेटी का एडमीशन स्कूल में करवाया। इसके बाद तो स्कूल स्टाफ और सरकारी कर्मचारियों ने भी यहां रुचि दिखाई। आज 500 से ज्यादा सरकारी कर्मियों के बच्चे यहां पढ़ते हैं। कोई बच्चा बाहर कोचिंग नहीं लेता। हर साल मेरिट में स्कूल का नाम रहा है। हमारा प्रयास लगातार अच्छी शिक्षा देना है। 
2200 छात्र-छात्राएं, नए दाखिले फर्स्ट और 11वीं में 
अब शिक्षकों और सुविधाओं के हिसाब से बच्चों की संख्या ज्यादा है। हमारे यहां वर्तमान में 86 शिक्षकों की पोस्ट है। मगर केवल 44 टीर ही पढ़ा रहे हैं। चूंकि वह पढ़ाई के दौरान पूरी ईमानदारी बरतते हैं, इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं है। लेकिन अगर बच्चे बढ़ेंगे तो परेशानी होगी। इस बार सिर्फ कक्षा एक और 11वीं में ही दाखिले लिए जा रहे हैं। अब तक 110 बच्चों के दाखिले हो चुके हैं। अब हमारे पास जगह नहीं है। इसलिए प्रवेश नहीं ले पा रही हूं। लेकिनदाखिले के लिए लोग तरह-तरह की सिफारिश करवा रहे हैं, कई जगह से तो धमकियां भी मिल रही हैं।

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