पहले बच्चों के मन से दसवीं बोर्ड परीक्षा का डर दूर करने के लिए सरकार ने बोर्ड परीक्षा खत्म कर ग्रेडिंग सिस्टम की शुरूआत की। इसमें ज्यादातर बच्चे पास हो जाते थे। लेकिन स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता खासी प्रभावित हो रही थी। अब केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने यह फैसला किया है कि दसवीं कक्षा के अंतिम सेमिस्टर में होने वाली परीक्षा में बच्चे को 25 फीसदी अंक लाने अनिवार्य होंगे तभी उसे पास माना जाएगा अन्यथा उसे फेल समझा जाएगा। यह निर्णय 22 जनवरी को सीबीएसई की आमसभा की बैठक में लिया गया। वर्ष 2013-14 से यह फैसला मान्य होगा।
25 फीसदी का फंडा :
दसवीं में बच्चों को दो तरह की परीक्षाएं देनी पड़ती हैं। एक फॉरमीटिव और दूसरी सबमीटिव। फॉरमीटिव में ज्यादातर पेपर एक्स्ट्रा केरीकुलर एक्टीविटिज के होते हैं और सबमीटिव में थयोरी पेपर होते हैं। अगर बच्चे के फॉरमीटिव में 40 अंक हैं तो सबमीटिव में 60 अंक आने चाहिए। तिमाही परीक्षा में दो बार 30-30 अंक आने चाहिए। तभी बच्चे को पास माना जाएगा। ‘कोर्स कोलॉस्टिव असिसमेंट’ में जो बच्चा अच्छा प्रदर्शन करता था। उसे कुछ विषयों में कम ग्रेड मिलने पर ग्रेड बढ़ाकर पास कर दिया जाता था। लेकिन नए नियम के तहत अब इस प्रक्रिया में प्रत्येक स्कूल केवल एक्स्ट्रा केरीकुलर एक्टीविटीज में सर्वर्शेष्ठ प्रदर्शन करने वाले 5 फीसदी बच्चों को शामिल कर सकेंगे सभी को नहीं। सबको यह फायदा देने से जो बच्चे बाकी विषयों में अच्छा कर रहे हैं जरूरी नहीं कि वो थयोरी सब्जेक्ट्स में अच्छा करें।
एचआरडी का तर्क :
मानव संसाधन मंत्रालय में संयुक्त सविव (माध्यमिक शिक्षा) अपूर्व चंद्रा ने हरिभूमि से कहा कि यह एक अच्छा कदम है। इससे बच्चों पर पढ़ाई का बहुत ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा और उनकी रूचि भी बनी रहेगी। ग्रेडिंग सिस्टम से पास होकर ग्यारहवीं कक्षा में जो बच्चे जा रहे थे उनमें ज्यादातर पढ़ने में कमजोर थे।
....HB
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.