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Sunday 4 January 2015

बेहतर शिक्षा के नाम पर पूरे साल चलती है जेब पर कैंची

** एनसीईआरटी सिलेबस की किताबें सिर्फ बोर्ड कक्षाओं पर लागू करते हैं 
** अपने मनमाने सिलेबस की किताबें बेचते हैं निजी स्कूल 
अम्बाला : उच्च न्यायालय के आदेश हैं कि स्कूल के अंदर किसी भी तरीके से दुकान नहीं चलाई जा सकती है। फिर भी कुछ स्कूल इस नियम को ताक पर रखकर स्कूल के अंदर ड्रेस, किताब स्टेशनरी के नाम पर अभिभावकों से मनमाने ढंग से पैसा वसूल रहे हैं। बच्चों को मजबूरन स्कूल से ही सामान खरीदना पड़ता है। प्रशासन भी ऐसे स्कूलों पर कोई कार्रवाई नहीं करता। निजी स्कूल शिक्षा विभाग के नियमों को ताक पर रखकर एनसीईआरटी के अधिकृत किताबों का सिलेबस रखकर प्रशासन के नियमों को धता बताते हैं। निजी स्कूलों की किताबें भी सिर्फ स्कूलों की दुकानों पर ही मिलती हैं। स्कूल इन किताबों के मूल्य भी स्वयं निर्धारित करते हैं, जिन्हें अभिभावकों चाहते हुए भी खरीदना पड़ता है। 
टैक्स से बचने का भी खोजा जुगाड़
निजी स्कूल ड्रेस स्टेशनरी के अभिभावकों बेचते हैं साथ ही वो इसका प्रिंटेड बिल भी नहीं देते। सिर्फ कम्प्यूटर या हाथ से बने बिल अभिभावकों को देते हैं। अभिभावकों को दिए बिल पर ऐसे दुकानदार सरकार को सेल टैक्स नहीं देते हैं। ऐसे में सरकार को मिलने वाले लाखों के टैक्स को हजम कर जाते हैं। जिलें में हर साल लगभग 25 से 30 हजार बच्चे नए एडमिशन करवाते हैं। जिन्हें स्कूल द्वारा ड्रेस और स्टेशनरी के सामान बेचे जाते हैं। 
"निजी स्कूलों ने क्वालिटी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया था, लेकिन कुछ स्कूल अपने इस उद्देश्य से भटक रहे हैं। वे स्कूल को एक व्यवसाय के रूप में देखते हैं, ऐसे स्कूलों के ऊपर प्रशासन को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।"-- रमेशबंसल, प्रिसिंपल,सनातन धर्म वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय 
अभिभावक सख्ती से पेश आएं
हरियाणा पैरेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अजय गुप्ता कहते हैं कि कई निजी स्कूल अपने मनमाने ढंग से अभिभावकों से पैसा वसूल रहे हैं। अभिभावकों को भी जरूरी है कि वे ऐसे स्कूलों की खिलाफ सख्ती से पेश आना चाहिए। वरना निजी स्कूलों की मनमानी इसी तरीके से चलती रहेगी। 
जो स्कूल सीधे सामान बेचने से बचना चाहते हैं, उन्होंने बाजारों में फिक्स कर रखे हैं दुकान
कुछ निजी स्कूल जो ऐसा नहीं कर पाते हैं, उन्होंने बाहर के दुकानदारों को ड्रेस स्टेशनरी बेचने की अनुमति दे रखी है। इस तरह से स्कूल अभिभावकों से मनमाने रेट पर ड्रेस स्टेशनरी खरीदवा लेते हैं। यदि प्रशासन सरकार जनता के बीच में अपना विश्वास बनाए रखना चाहती है तो उसे ऐसे स्कूल के खिलाफ ठोस कदम उठाना होगा। नहीं तो जनता का प्रशासन सरकार के ऊपर से विश्वास खत्म हो जाएगा।                                                db

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