** अतिथि शिक्षकों ने विधानसभा के बाहर किया प्रदर्शन
** ‘रद्दी का टुकड़ा है दिल्ली सरकार का यह अधिनियम’
नई दिल्ली : उपराज्यपाल अनिल बैजल ने ‘सर्व शिक्षा अभियान विधेयक 2017’ के
तहत अतिथि शिक्षकों की सेवाओं को नियमित करने से संबंधित बिल को विधानसभा
में पेश न करने की हिदायत दी थी, जिसे सरकार ने दरकिनार कर दिया। बिल के
मौजूदा स्वरूप को उपराज्यपाल ने असंवैधानिक करार दिया था, इसके बावजूद
शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने उसी स्वरूप में बिल को बुधवार को विधानसभा
में पेश किया। विपक्ष के सदस्यों द्वारा उठाए गए सवालों के बावजूद बिल
सर्वसम्मति से पारित हो गया। उपराज्यपाल ने आपत्ति जताई है कि सर्विसेज से
संबंधित फैसले सरकार नहीं ले सकती है, इस पर सिसोदिया का कहना है कि यह बिल
शिक्षा और शिक्षकों से जुड़ा हुआ है और सरकार शिक्षा को सर्विसेज में नहीं
मानती है।
विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने के कुछ देर बाद शिक्षामंत्री
मनीष सिसोदिया ने अतिथि शिक्षकों से संबंधित उक्त बिल सदन में पेश किया।
उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार की कैबिनेट के पास मुख्य मसलों पर स्वतंत्र
निर्णय लेने का अधिकार है, जैसे कि केंद्र सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया
था। हम प्रधानमंत्री को फॉलो कर रहे हैं। दिल्ली सरकार के इस फैसले से 15
हजार शिक्षकों की नौकरी पक्की होगी। उपराज्यपाल द्वारा बिल पर उठाए गए सवाल
पर उन्होंने कहा कि सरकार एलजी की राय से इत्तेफाक नहीं रखती है। विधानसभा
में बिल पेश होने से कुछ घंटे पहले पत्र भेजकर बिल पर पुनर्विचार करने की
बात कहकर उपराज्यपाल ने विधानसभा का अपमान किया है। विधानसभा में सरकार ने
कैबिनेट से पास बिल पेश किया है, कोई भी विधायक विधानसभा में बिल लाने के
लिए स्वतंत्र है। बिल पूरी प्रक्रिया के तहत लाया गया है। विधानसभा के पास
किसी भी बिल को पास करने की ताकत है। विपक्ष के सवालों के जवाब में
सिसोदिया ने कहा कि फाइलों के आधे-अधूरे पेज नहीं लहराए जाने चाहिए। जिन
कागजों के आधार पर विपक्ष बात करता है, उन्हें वह खारिज करते हैं। विस में
पेश बिल पर करीब तीन घंटे तक चर्चा की गई।
‘रद्दी का टुकड़ा है दिल्ली सरकार का यह अधिनियम’
दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल की सहमति के बिना जिस विधेयक को
विधानसभा में पास किया है, वह विशेषज्ञों की नजर में रद्दी का टुकड़ा है,
जिसका कोई मतलब नहीं है। लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा कहते हैं कि
दिल्ली केंद्र शासित राज्य है। यहां कोई भी कानून (अधिनियम) बनाने के लिए
चार संस्थाओं की सहमति जरूरी है। इसे विधानसभा में अनुमति के लिए
उपराज्यपाल के पास भेजा जाता है। उपराज्यपाल विधेयक में कुछ सुझाव जोड़ते
हैं या नहीं, यह उनका अधिकार है। उपराज्यपाल विधेयक को दिल्ली विधानसभा के
पास भेजते हैं, जिसमें उनका सहमति पत्र लगा होता है। दिल्ली विधानसभा से
स्वीकृति मिलने के बाद इसे केंद्र सरकार के पास अनुमति के लिए भेजा जाता
है। यदि इसका पालन नहीं किया गया है तो कानून का कोई मतलब नहीं है।1चार
मामलों में दिल्ली सरकार नहीं बना सकती कानून: एसके शर्मा कहते हैं कि लोक
सेवाएं (सर्विसेज मैटर), पुलिस, भूमि व कानून व्यवस्था पर दिल्ली सरकार
कानून नहीं बना सकती है। अतिथि शिक्षकों को लेकर दिल्ली सरकार द्वारा पास
किया गया यह विधेयक लोक सेवाएं के अंतर्गत आता है। इस लिहाज से भी यह गलत
किया गया है। सरकार का यह प्रयास गेस्ट शिक्षकों को भ्रमित करने के लिए तो
हो सकता है, मगर सच्चाई में यह कुछ नहीं है। सरकार यह कह सकती है कि हमने
तो कानून बना दिया, एलजी इसे पास नहीं कर रहे हैं।
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