'मासिक परीक्षा मूल्यांकन में लापरवाही पर शिक्षक एवं स्कूल मुखिया पर होगी कार्रवाई'
सोनीपत : मासिक मूल्यांकन
टेस्ट की उत्तर पुस्तिकाओं में लापरवाही पर जांच करने वाले शिक्षक एवं
संबंधित स्कूल मुखिया के खिलाफ अब कार्रवाई होगी। विभाग ने इसके लिए
जिम्मेदारी तय कर दी है। हाल के समय में निरंतर सामने रही गड़बड़ी को देखते
हुए शिक्षा विभाग ने यह फैसला किया है। इस बारे में शिक्षा विभाग के
ज्वाइंट सेक्रेटरी वीरेंद्र सिंह ने प्रदेश के सभी जिला शिक्षा अधिकारियों
को आदेश दिए तो स्थानीय स्तर पर भी संबंधित को दिशा निर्देश दिए गए हैं।
जिसके अंतर्गत गड़बड़ी पर अंकुश लगाने और मासिक टेस्ट को पारदर्शी बनाने का
फैसला लिया गया है।
मासिक परीक्षा को लेकर यह भी बदलाव :
इसकेसाथ ही
निर्देश दिए गए हैं कि टेस्ट के बाद आंसरशीट का रिकॉर्ड एक साल तक रखा जाए।
नई व्यवस्था के तहत अब अर्द्धवार्षिक वार्षिक परीक्षाओं के लिए प्रश्न
पत्र निदेशालय की ओर से भेजे जाएंगे। वहीं मासिक मूल्यांकन टेस्ट के लिए
प्रश्न पत्र स्कूल मुखिया, बीआरसी की मेल पर भेजे जाएंगे। टेस्ट के तुरंत
बाद उत्तर पुस्तिकाओं को चेक करके रिजल्ट शिक्षा विभाग को भेजनी होगी और
परिणाम के बारे में विद्यार्थियों को भी अवगत कराना होगा। 9वीं से 12वीं
कक्षा के मंथली टेस्ट पेपर भी सेंट्रलाइज्ड किए जाएंगे।
इसलिए व्यवस्था में बदलाव
शिक्षा विभाग
के आला अधिकारी ने एक स्कूल में औचक निरीक्षण के दौरान मंथली टेस्ट की एक
तस्वीर सामने आई। जिसमें एक अंग्रेजी शिक्षक ने विद्यार्थियों को पेपर में
गलत सवाल के भी नंबर दिए हुए थे। इसके अतिरिक्त काफी विद्यार्थियों को उनके
पूरे नहीं ही नहीं दिए गए थे तो कई जगह कॉपी नहीं जांची गई थी। इसका असर
वार्षिक परीक्षा में देखने को मिलता है जब एक ओर मंथली टैस्ट में स्कूल
अव्वल आते हैं और मुख्य परीक्षा में उनका पिछड़ापन नजर आता है।
"बेहतर
परीक्षा संचालन एवं उनके मूल्यांकन के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं। जो
शिक्षक लापरवाही करेगा उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
उम्मीद है कि इससे शिक्षक कक्षा में पढ़ाने मूल्यांकन में पूरी गंभीरता
दिखाएगा।"-- सुमन नैन,डीईओ, सोनीपत।
इस परेशानी से आम जूझते हैं स्कूल
सरकारी स्कूलों में मासिक परीक्षा
मूल्यांकन डाटा अपलोड करने की जिम्मेवारी स्कूल मुखिया की है। कि वह डाटा
अपलोड करवाए। लेकिन संसाधनों का अभाव इसमें सबसे बड़ा रोड़ा है। स्कूल
अध्यापकों की माने तो स्टाफ का पहले से ही टोटा है। ऐसे में एक अध्यापक को
दो-दो कक्षाएं संभालनी पड़ रही हैं। शिक्षा विभाग ने क्लेरिकल काम भी
अध्यापकों पर डाल रखा है। अधिकतर स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा नहीं है।
उन्हें इंटरनेट कैफे का सहारा लेना पड़ता है।
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