चंडीगढ़ : सरकारी कॉलेजों में सरप्लस स्टाफ की नौकरी बचाने के लिए
विद्यार्थियों के नाम पर खूब फर्जीवाड़ा चल रहा है। निदेशालय स्तर पर
कॉलेजों की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद यह राज खुला। गड़बड़ियां पकड़
में आने के बाद उच्चतर शिक्षा निदेशालय ने सभी कालेजों पर सख्ती दिखाते हुए
एडवाइजरी जारी की है। अध्ययन के दौरान सामने आया कि कई कॉलेजों में
विद्यार्थियों की संख्या 81 से 85 के बीच होने पर वर्क लोड में नया सेक्शन
दिखाया गया है, लेकिन समय सारिणी में अलग सेक्शन का कोई उल्लेख नहीं। इससे
साफ है कि वर्क लोड को बढ़ा दिखाया गया, जबकि महाविद्यालय में तैनात
शिक्षकों ने अलग से कोई क्लास या सेक्शन नहीं लिया। तीन वर्षीय डिग्री
कोर्स के प्रायोगिक विषयों में भी खूब गड़बड़ियां हैं। ग्रेजुएशन के पहले
साल में विद्यार्थियों की संख्या 21 से 24 और दूसरे व तीसरे साल में 16 से
19 होने पर कार्य भार में नया प्रायोगिक समूह दर्शाया गया है। कॉलेजों की
समय सारणी में ऐसा कोई अतिरिक्त प्रायोगिक समूह नहीं दिखाया गया है। इकलौती
प्रयोगशाला छह दिन तक नियमित प्रायोगिक समूहों के साथ व्यस्त है तो
अतिरिक्त प्रायोगिक समूहों ने कहां प्रैक्टिकल किया, इसका कहीं जिक्र नहीं।
नियमों को ताक पर रख बढ़ाई सीटें :
सरकार हर साल कैलेंडर वर्ष के लिए
अतिरिक्त स्टाफ नहीं देने की शर्त पर कॉलेजों को सीटों में 10 फीसद तक
बढ़ाने की स्वीकृति देती है। उदाहरण के लिए अगर एक वर्ष के लिए 10 फीसद
सीटों की बढ़ोतरी होती है तो छात्रों की संख्या 80 से बढ़कर 88 हो जाएगी।
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