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Saturday 7 December 2013

उच्चतर शिक्षा विभाग का शिक्षक सम्मान व नीति सवालों के घेरे में

** बिना आवेदन मांगे, बिना योग्यता जांचे और शिक्षा क्षेत्र में योगदान भी कर दिया नजरदंाज 
** आरटीआई में खुलासा
** खुद ही ज्यूरी, खुद ही ले लिए पुरस्कार
पानीपत : अध्यापक दिवस अपनी तय तिथि के अनुसार बीत चुका है, समारोह में शिक्षक सम्मानित भी हो चुके हैं, लेकिन इस समारोह में दिए गए सम्मान और उनको देने के लिए बनाई गई नीति अब कठघरे में है। उच्चतर शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने राज्य शिक्षक पुरस्कार से अपने चहेतों को नवाजने के साथ-साथ स्वयं को भी पुरस्कृत किया। बिना आवेदन मांगे, योग्यता का आंकलन किए बगैर और शिक्षा क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान को बिना जांचे परखे ये पुरस्कार दे दिए गए। 
आरटीआई से उच्चतर शिक्षा विभाग के अधिकारियों की पुरस्कार देने की 'मनमर्जी की नीति' का खुलासा हुआ है। इस महत्वपूर्ण दिन पर शिक्षकों को सम्मान देने की रूपरेखा तय करने से लेकर सम्मान देने और इसके लिए आयोजन पर हुए लाखों रुपए के खर्च में उच्चतर शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने स्कूली शिक्षा विभाग को भी पीछे छोड़ दिया। स्कूली शिक्षा विभाग ने पुरस्कारों के लिए क्राइटेरिया तो तय किया था, लेकिन उच्चतर शिक्षा विभाग तो यह भी पूरी तरह तय नहीं कर पाया। 
इसी साल लिया गया था फैसला : 
2013 में पहली बार उच्चतर शिक्षा विभाग ने फैसला लिया कि प्रदेश के कॉलेजों में कार्यरत श्रेष्ठ शिक्षकों को शिक्षक दिवस पर सम्मानित किया जाए। इसके लिए 7 अगस्त 2013 को बैठक बुलाई गई। पुरस्कार देना था शिक्षकों को उनके योगदान/सेवा आदि की उत्कृष्टता के लिए, लेकिन प्रधान सचिव उच्चतर शिक्षा ने बैठक बुलाई अधिष्ठाता युवा व छात्र कल्याण के प्रमुखों की। 
बैठक में तय हुआ कि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस शानदार तरीके से मनाया जाए। पंचकूला के सेक्टर-5 स्थित इंद्रधनुष सभागार में राज्य स्तरीय समारोह आयोजित किया जाएगा। इस बैठक में पुरस्कार के लिए 10 प्राध्यापकों और 3 प्रिंसीपलों को चयनित करने के लिए 'एक ज्यूरी' के गठन का प्रस्ताव रखा गया। ज्यूरी में तीन पूर्व प्राचार्य (एक वर्तमान वीसी) व एक एसोसिएट प्रोफेसर का नाम था, साथ में एक अधिकारी को भी शामिल किया गया था। 
पांच सवाल जिनके चाहिए जवाब 
  • लगभग 2000 शिक्षकों और 100 प्राचार्यों से बिना आवेदन मांगे/बिना आधार के किस पैमाने पर, किस योग्यता से पुरस्कृत किया गया? 
  • किसी उपयुक्तआधार को अपनाने, सभी को समान अवसर दिए बगैर सैकड़ों शिक्षकों की सत्यनिष्ठा और उनके योगदान पर गंभीर आक्षेप लगाने का उच्चतर शिक्षा विभाग का औचित्य क्या है? 
  • शिक्षकों को पुरस्कार देना था ऐसे में अधिष्ठाता युवा और छात्र कल्याण की बैठक क्यों बुलाई गई? 
  • ज्यूरी में शामिल लोग क्या खुद ही पुरस्कार लेने के पात्र हैं, पात्र हैं तो किस आधार पर? 
  • क्या ज्यूरी को पहले से तय नामों पर हामी ही भरनी थी? क्या यह ज्यूरी के नाम पर छलावा नहीं था?

पुरस्कार के लिए अफसरों की भी बना दी कैटेगरी 
पुरस्कारों का नाम चयनित करने के लिए दोनों श्रेणियों में एक ही ज्यूरी बनाई गई थी। इस ज्यूरी को प्रदेश भर के लगभग दो हजार नामों में से सर्वश्रेष्ठ प्राध्यापक व सर्वोत्तम प्रिंसीपल का चयन करना था। ये दो श्रेणियां थीं जो आगे तीन हो गईं? उपरोक्त 'ज्यूरी' की बैठक 23 अगस्त 2013 को बुलाने के मौखिक आदेशों पर आदेश जारी हुए, लेकिन तारीख 22 अगस्त 2013 भी दर्शाई गई। जबकि बैठक का प्रस्ताव स्वयं 23 अगस्त को रखा गया। यहां महत्वपूर्ण पहलू यह भी कि पीडी शर्मा को छोड़ ज्यूरी के तीन सदस्य स्वयं ही पुरस्कृत हो गए
...ऐसे जोड़ दिए तीन अधिकारियों के नाम 
शिक्षा मंत्री व मुख्यमंत्री से जब 10 श्रेष्ठ प्राध्यापकों व 3 प्रिंसीपलों को ही पुरस्कृत करने के लिए अनुमति मांगी जा रही थी, तभी महानिदेशक उच्चतर शिक्षा विभाग अंकुर गुप्ता ने अपने पैन से मुख्यालय में प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत तीन डिप्टी डायरेक्टरों को भी पुरस्कृत करने की अनुशंसा कर दी। अब श्रेष्ठ प्राध्यापक अवॉर्ड मजाक व अपमान का पर्याय बन गया। इस श्रेणी में ना किसी को पुरस्कार देने की योजना थी और ना कोई प्रस्ताव था, लेकिन इसे पाने और दे कर उपकृत करने का खेल बढ़ गया। शिक्षा विभाग के वित्तायुक्त एवं प्रधान सचिव एसएस प्रसाद ने शिक्षा मंत्री से अनुमोदन के लिए जो पत्र लिखा उसमें भी अब श्रेष्ठ प्राध्यापक व प्रिंसीपल के साथ-साथ 3 अधिकारी जो प्रतिनियुक्ति पर मुख्यालय में गैर-शैक्षणिक कार्य करते हैं। उन्हें भी पुरस्कृत करने की मंजूरी मांगी। पत्र में दर्शाया गया कि तीनों अधिकारी 'पब्लिक डीलिंग' का कार्य करते हैं। जबकि ये प्रस्ताव 7 अगस्त की मीटिंग में नहीं था, जिसे आधार बनाकर इन पुरस्कारों को देने की अनुशंसा की गई।
ये हुए थे पुरस्कृत 
प्रिंसिपल कैटेगरी 
1. राधेश्याम शर्मा, (वर्तमान में वाइस चांसलर सीडीएलयू सिरसा) 
2. अशोक दिवाकर, रिटा. प्रिंसिपल, गवर्नमेंट कॉलेज गुडग़ांव। 
3. श्रीमती कुसुम बजाज, प्रिंसीपल, गवर्नमेंट कॉलेज तिगांव, गुडग़ांव। 
(नोट : इनमें से दो नाम पुरस्कारों के लिए गठित ज्यूरी में शामिल थे) 
अधिकारियों के नाम 
1. अनिता चौधरी, डिप्टी डायरेक्टर, डीजी कार्यालय उच्चतर शिक्षा विभाग मुख्यालय, पंचकूला। 
2. अरुण जोशी, डिप्टी डायरेक्टर, डीजी कार्यालय उच्चतर शिक्षा विभाग मुख्यालय, पंचकूला। 
3. हेमंत वर्मा, डीजी कार्यालय उच्चतर शिक्षा विभाग मुख्यालय, पंचकूला।( नोट : हेमंत वर्मा ज्यूरी में शामिल थे) 
शिक्षक कैटेगरी 
1. इंदू जैन, एसोसिएट प्रोफेसर संस्कृत गवर्नमेंट कॉलेज जाटौली, गुडग़ांव। 
2. वीपी सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर ज्योग्राफी, गवर्नमेंट कॉलेज अम्बाला कैंट, अम्बाला। 
3. डॉ. सुभाष शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर फिजिक्स, गवर्नमेंट कॉलेज करनाल। 
4. डॉ. साधना प्रकाश, एसोसिएट प्रोफेसर कैमिस्ट्री गवर्नमेंट महिला कॉलेज रोहतक। 
5. ऋचा सेतिया, एसोसिएट प्रोफेसर माइक्रो बायोलॉजी, गवर्नमेंट कॉलेज पंचकूला। 
6. सितोज सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर हिंदी, गवर्नमेंट कॉलेज नारनौल 
7. डॉ. नीर कंवल, एसोसिएट प्रोफेसर अंग्रेजी, गवर्नमेंट कॉलेज फरीदाबाद। 
8. डॉ. दलबीर सिंह लाठर, एसोसिएट प्रोफेसर कॉमर्स, गवर्नमेंट कॉलेज जींद। 
9. रविंदर पुरी एसोसिएट प्रोफेसर, फिजियोलॉजी, गवर्नमेंट कॉलेज सिरसा। 
10. सुनीता यादव, एसोसिएट प्रोफेसर इकॉनॉमिक्स, गवर्नमेंट कॉलेज सेक्टर-14 गुडग़ांव 
(इनमें से डॉ. साधना प्रकाश को साल 2010-11 में वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) एवरेज होने के कारण पुरस्कार नहीं दिया गया) 
समारोह के लिए त्र6 लाख स्वीकृत 
ये थे ज्यूरी में शामिल 
समारोह के लिए पहली किश्त के रूप में 6 लाख रुपए की राशि आरके फंड (राधाकृष्णन फंड जो कि छात्रों को कल्याणार्थ तथा शिक्षा संबंधी गतिविधियों सेमिनार आदि के लिए होता है) से स्वीकृत की गई। 
1. डॉ. राधेश्याम शर्मा, वाइस चांसलर, देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा। 
2. अशोक दिवाकर, रिटायर्ड प्रिंसिपल, 
3. पीडी शर्मा, रिटायर्ड प्रिंसिपल, 
4. हेमंत वर्मा, डिप्टी डायरेक्टर, उच्चतर शिक्षा महानिदेशालय पंचकूला। 
(इन नामों को कैसे ज्यूरी में डाला गया, किस आधार पर, यह उच्चतर शिक्षा विभाग के अधिकारी ही जानते हैं।)
आरटीआई कार्यकर्ता की मांग-निष्पक्ष जांच हो : 
आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष का कहना है कि पुरस्कारों के नाम पर जो बंदरबांट में प्रशासनिक नैतिकता का खुला उल्लंघन किया गया जिसमें राज्यपाल को भी अंधेरे में रखा गया। इस मामले में शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव एसएस प्रसाद की भूमिका की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।                     db





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