अंबाला शहर : हिन्दी हैं हम, वतन हैं हिन्दू सितां हमारा..देशभक्ति
और हिन्दी भाषा से ओत प्रोत इस पंक्ति की सार्थक वीरों के प्रदेश हरियाणा
में अब आखिरी स्टेज पर है। प्रदेश में हिन्दी का अस्तित्व खतरे में है।
हालात यह हैं कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में जहां हिन्दी विभाग को हर
साल हिन्दी की सीट भरने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है, वहीं सरकारी
स्कूलों में कार्यरत करीब 2700 हिन्दी अध्यापकों में से 2500 हिन्दी अध्यापक सरप्लस हो गए हैं।
अलबत्ता प्रदेश में अब आने वाले समय में हिन्दी टीजीटी पदों के लिए नियुक्ति नजर नहीं आ रही है। हालत यह है कि प्रदेश के
किसी भी सरकारी मिडल स्कूल में हिन्दी अध्यापक का पद ही स्वीकृत नहीं है।
हाई स्कूल में हिन्दी अध्यापक के पद स्वीकृत थे लेकिन अब अब वहां भी इनका
अस्तित्व अब लगभग खत्म हो चुका है। क्योंकि टीजीटी के बजाय अब पीजीटी ही
नौवीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं को हिन्दी पढ़ाएंगे।
इस तरह प्रदेशभर के
हाईस्कूलों तक हिन्दी अध्यापकों की पोस्ट समाप्त हो चुकी हैं। ऐसे में हिन्दी भाषा की महत्ता और हिन्दी में ¨बदी का महत्व आखिर कौन बताएगा? यह
यक्ष प्रश्न है। इसका जवाब किसी के पास नहीं है। पहली भाषा देवभाषा संस्कृत
को बनाया गया है। इसीलिए मिडल स्कूलों तक किसी भी स्कूल में हिन्दी अध्यापक के पद खत्म कर दिए गए हैं। ऐसे में अब संस्कृत भाषा के साथ-साथ हिन्दी भाषा का दायित्व भी टीजीटी संस्कृत के कंधों पर ही है। यानी देवभाषा
संस्कृत में भविष्य उज्जवल है लेकिन हिन्दी में नहीं। यही कारण है कि हिन्दी की स्थिति प्रदेश में बिगड़ती जा रही है।
हिन्दी अध्यापक संघ के
पूर्व प्रदेशाध्यक्ष जसबीर सैनी हिन्दी की दिशा और दशा सुधारने के लिए
सरकार को मिडल स्कूलों में हिन्दी के पद स्वीकृत करने होंगे।
यह है प्रदेशभर में सरकारी स्कूलों की स्थिति
मिडल स्कूल 2400, हाई स्कूल 1382, सीसे. स्कूल 1829 : इस तरह 5611 सरकारी स्कूल प्रदेश में हैं जिनमें हिन्दी भाषा पढ़ाई जाती है। इनमें से केवल सीनियर सेकेंडरी यानी करीब 1829 स्कूलों के ही हंिदूी लेक्चरर के पद हैं। हाई स्कूलों में भी अब नौवीं और 10वीं को लेक्चरर ही पढ़ा रहे हैं। ऐसे में मास्टर पोस्ट खत्म हो गई हैं। यदि इन सभी स्कूलों में मातृभाषा को भी पहली भाषा का दर्जा दे दिया जाए तो प्रदेश में 2500 सरप्लस हिन्दीअध्यापकों की समस्या के साथ पांच हजार नये हिन्दी मास्टर नियुक्त हो सकते हैं।
नये रोजगार के अवसर तो दूर की बात पुराने लगेहुए हिन्दी के मास्टरों के लिए पदोन्नति के रास्ते ही बंद हो चुके हैं। वर्ष 2007 से अब तक किसी भी हिन्दी अध्यापक की पदोन्नति नहीं हुई है। पहले सरकार ने पदोन्नति रोकी थी। फिर संस्कृत के बीएड व एमए वालों की सरकार ने पदोन्नति कर दी, लेकिन शिक्षा शास्त्रियों की पदोन्नति नहीं की गई। शिक्षा शास्त्री हाईकोर्ट में चले गए और हाईकोर्ट ने संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी भाषायी अध्यापकों की पदोन्नति रोक दी। dj
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