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Monday, 12 September 2016

दिल्ली सरकार की शिक्षा सुधार नीति को हाई कोर्ट में चुनौती

** खंडपीठ ने दिल्ली सरकार व तीनों निगमों से मांगा जवाब, 28 नवंबर को होगी सुनवाई
** छठी कक्षा में पढ़ाने वाले सरकारी स्कूल के 74 प्रतिशत छात्र पढ़ना और लिखना भी नहीं जानते
** शिक्षा का अधिकार केवल स्कूल जाने के अधिकार तक सीमित रह गया है
** किसी का भी ध्यान अच्छी शिक्षा मुहैया कराने पर नहीं है
नई दिल्ली:दिल्ली सरकार द्वारा शिक्षा में सुधार को लेकर बनाई गई नई नीति ‘चुनौती 2018’ को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। नई नीति के अंतर्गत स्कूली बच्चों के बीच में ही पढ़ाई छोड़ने और कमजोर बच्चों को पढ़ाई के नए अवसर मुहैया कराने की योजना है। याचिका पर हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए कहा है।
मुख्य न्यायधीश जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा की खंडपीठ ने याचिका पर दिल्ली सरकार के साथ-साथ दिल्ली के तीनों निगमों को भी अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। याचिका में कहा गया है कि सरकार की शिक्षा में बदलाव की योजना चुनौती 2018 केवल छठी से नौवीं कक्षा के बच्चों तक ही सीमित है। प्राथमिक शिक्षा को इससे नहीं जोड़ा गया है। जरूरत है कि इसमें प्राथमिक शिक्षा को भी जोड़ा जाए। खंडपीठ इस याचिका पर 28 नवंबर को सुनवाई करेगी।
सेंटर वॉर सिविल सोसाइटी द्वारा लगाई गई इस याचिका में कहा गया है कि मौजूदा स्थिति में शिक्षा का अधिकार केवल स्कूल जाने के अधिकार तक सीमित रह गया है। सरकार की प्राथमिकता केवल स्कूल की अच्छी इमारत तैयार करना, शिक्षक मुहैया कराना व शौचालय आदि मुहैया कराने तक सीमित रह गई है। किसी का भी ध्यान अच्छी शिक्षा मुहैया कराने पर नहीं है। 
याची ने कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून कहता है कि सभी छात्रों को अच्छी शिक्षा मुहैया कराई जाए। उन्हें लक्ष्य दिए जाएं, समय समय पर उनका मूल्यांकन किया जाए। इसे न केवल माध्यमिक स्तर पर बल्कि शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर भी लागू किया जाए। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा गया कि छठी कक्षा में पढ़ाने वाले सरकारी स्कूल के 74 प्रतिशत छात्र पढ़ना और लिखना भी नहीं जानते हैं। इससे यह साफ पता चलता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर किस कदर पिछड़ा हुआ है।                                                                               dj

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