** जांच समिति को दस्तावेजों में
मिली कई गड़बड़ियां
नई दिल्ली : जिस फोरेंसिक लैब (एफएसएल) की रिपोर्ट पर अपराधियों को सजा
मिलती है, उसी में वर्ष 2009 में फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र के आधार पर वरिष्ठ
वैज्ञानिकों की भर्ती का मामला प्रकाश में आया है। गत वर्ष जनवरी में वकील
केहर सिंह की शिकायत पर लैब के निदेशक ने जून में डिप्टी डायरेक्टर डॉ.
मधुलिका शर्मा की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की थी। समिति ने पहली
रिपोर्ट दो महीने में और अंतिम रिपोर्ट मार्च 2016 में निदेशक को सौंपी।
निदेशक ने रिपोर्ट तत्काल दिल्ली सरकार को भेज दी, लेकिन अब तक इस पर कोई
कार्रवाई नहीं हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक वरिष्ठ वैज्ञानिक पद पर हुई
भर्ती में कई प्रतिभागियों के अनुभव प्रमाणपत्र में गड़बड़ी मिली हैं। इस
बारे में स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन से फोन और एसएमएस के जरिये संपर्क
करने की कोशिश की गई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
केस -1 : बाहरी दिल्ली के
रोहिणी स्थित फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में सहायक निदेशक डॉ. अरुणा मिश्र
की भर्ती 2009 में वरिष्ठ वैज्ञानिक के तौर पर हुई थी। उन्होंने अनुभव
प्रमाणपत्र में दावा किया कि पांडव नगर स्थित डॉ. केवी भास्कर के शांति
मेडिकल सेंटर में 1 फरवरी 2003 से 31 अक्टूबर 2004 और 1 दिसंबर 2005 से 31
जुलाई 2006 तक क्लीनिक साइकोलॉजिस्ट के रूप में काम किया। फैकल्टी मेंबर के
रूप में उन्होंने आइएएस चाणक्य एकेडमी में 3 जुलाई 2004 से 25 नवंबर 2005
तक काम किया। फोरेंसिक लैब असिस्टेंट डायरेक्टर परशुराम सिंह व एनपी
वाघमारे सर्टिफिकेट सत्यापन के लिए 18 दिसंबर 2015 को पांडव नगर के उक्त
पते पर पहुंचे तो पता चला कि वह आवासीय पता है। वहां कोई क्लीनिक अस्तित्व में नहीं है। जांच टीम जब चाणक्य एकेडमी पहुंची
तो उसने प्रमाणपत्र सत्यापित किया, लेकिन अरुणा के वेतन के बारे में पूछने
पर कहा कि इसकी जानकारी ई-मेल के जरिये दी जाएगी। 1 फरवरी 2016 में रिपोर्ट
दिए जाने तक एकेडमी ने जानकारी उपलब्ध नहीं कराई।
केस-2: वरिष्ठ वैज्ञानिक
इमराना ने भर्ती के दौरान अनुभव प्रमाणपत्र के तौर पर दाखिल दस्तावेज मे
दावा किया था कि उन्होंने 5 जून 2005 से 10 जून 2008 तक परफेक्ट एनालिटिकल
लैब में कार्य किया है। जांच के लिए फोरेंसिक लैब की तरफ से विजय राज आनंद
एवं डॉ. विरेंद्र सिंह की टीम मौके पर पहुंची, वहां सांझी कोऑपरेटिव ग्रुप
हाउसिंग सोसाइटी मौजूद थी। टीम को सोसायटी के अध्यक्ष टीवी दिनेश और मैनेजर
तैयब हुसैन ने बयान दिया कि वहां परफेक्ट लैब थी ही नहीं।
केस-3: सहायक
निदेशक बबितो देवी ने आवेदन में दावा किया कि उन्होंने तीन साल पांच महीने
तक मणिपुर फोरेंसिक लैब में कार्य किया। इस बाबत आरटीआइ के तहत मांगी गई
जानकारी में मणिपुर फोरेंसिक लैब ने जानकारी दी कि बबितो देवी लैब में
कर्मचारी नहीं रही हैं और न ही उन्हें वेतन दिया गया है। 5 दिसंबर 2015 को
लैब डायरेक्टर डॉ. एस जॉयचंद्रा सिंह ने भी कहा कि बबितो लैब की कर्मचारी
नहीं थी, बबितो ने उनकी देखरेख में वर्ष 2002 तक काम किया था और इसके लिए
उन्हें वेतन नहीं दिया गया था।
केस-4 : सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत
हिमाक्षी भारद्वाज ने वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर आवेदन के दौरान दावा किया
था कि उन्होंने एनसीईआरटी8 से जूनियर प्रोजेक्ट फेलो (जीपीएफ) पद पर 8
अगस्त 2005 से 31 मार्च 2006 तक, रिसर्च एसोसिएट (आरए) पद पर 19 मई 2006 से
31 जनवरी 2008 तक और कंसल्टेंट पद पर 1 फरवरी 2008 से मार्च 2009 तक कार्य
किया है। सूचना के आधार पर मांगी गई जानकारी में 10 अप्रैल 2015 में
एनसीईआरटी के मुख्य सूचना अधिकारी ने बताया कि हिमाक्षी भारद्वाज ने 1
फरवरी 2008 से 30 अप्रैल 2009 तक कंसल्टेंट के रूप में 15 महीने काम किया
है। इसके अलावा अन्य रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।1एफएसएल दिल्ली के निदेशक,
आरके सरीन ने कहा कि भर्ती में अनियमितता के संबंध में विभागीय स्तर पर
जांच की गई थी। रिपोर्ट दिल्ली सरकार को भेज दी गई है। अंतिम निर्णय सरकार
को लेना है। dj
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