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Sunday, 13 November 2016

बचपन दबाव में : बैग का बोझ

बचपन दबाव में है। छोटी उम्र में माता-पिता की उम्मीदों का दबाव, इंटरनेट और डिजीटल मीडिया की चुनौती और उस पर स्कूल बैग के बोझ में बचपन कहीं खोता जा रहा है। इस सबके बीच प्रदेश सरकार द्वारा शनिवार के दिन बच्चों को बैग से राहत देना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। सभी सरकारी स्कूलों में शनिवार को खेल व अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां आयोजित की जाएंगी। यह कदम निश्चित तौर पर राहत देने वाला है। सही भी है, क्योंकि शिक्षा का मायना केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि नई पीढ़ी का सर्वागीण विकास कर सके। कुछ निजी स्कूल ऐसी गतिविधियों पर पहले से ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं लेकिन ऐसा पहली बार है कि सरकार इस बारे में सोच रही है। बदलते जमाने में कुछ स्कूलों ने तो बच्चों को बैग के बोझ से बिलकुल मुक्त कर दिया है और समस्त शिक्षण कार्य स्कूलों में उपलब्ध पुस्तकें और डिजिटल मीडिया के माध्यम से कराया जा रहा है। बड़े स्कूलों में तो यह सुविधा संभव है, हालांकि सरकारी स्कूलों में यह व्यवस्था अभी दूर की कौड़ी है। चूंकि इसमें अभिभावकों पर दोहरा बोझ पड़ता है।1उम्मीद करें कि यह योजना सही ढंग से आगे बढ़ेगी और इससे स्कूलों की स्थिति में बदलाव होगा। डर है कि इसका हश्र अभी तक स्कूलों में शुरू हुई अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओं की तरह न हो जाए। स्कूलों में तकनीकी आधारित शिक्षा को बढ़ाने के लिए सालों पहले एजुसेट लगाए गए थे। कई ऐसे स्कूलों में भी एजुसेट लगा दिए गए जहां बिजली की भी व्यवस्था नहीं थी। नतीजा करोड़ों रुपये कचरे में तबदील हो गए। इसी तरह सरकारी स्कूलों में व्यवस्था सुधारने के लिए करोड़ों रुपये का बजट जारी होता है लेकिन धरातल पर स्थिति में कोई बदलाव होता नहीं दिखता। मिड-डे मील ने स्कूलों को साझी रसोई का दर्जा दे दिया है। शिक्षक से लेकर छात्र तक सभी कक्षा के पाठ की बजाय दोपहर के खाने के प्रति अधिक चिंतित दिखते हैं। पहली बार ऐसी योजना है जिसमें बिना लाखों करोड़ों उड़ाए बच्चों के जीवन में बदलाव की उम्मीद की गई है। ऐसे में अगर धरातल पर यह योजना बेहतर ढंग से लागू होती है तो निश्चित तौर पर सरकारी स्कूलों के छात्रों में बौद्धिक स्तर में काफी सुधार होगा। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारे बिना बेहतर राष्ट्र व मजबूत प्रदेश का निर्माण संभव नहीं है। उम्मीद करेंगे बदलाव आएगा।

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