** हाई कोर्ट ने कहा, उचित आर्थिक सहायता किसी अच्छी नौकरी से कम नहीं
चंडीगढ़ :यदि किसी कर्मचारी की मौत के बाद सरकार उसके परिवार को उचित आर्थिक सहायता उपलब्ध करवा देती है तो सरकार उसके परिवार को सरकारी नौकरी देने के लिए बाध्य नहीं है। उचित आर्थिक मदद देना भी किसी नौकरी से कम नहीं है। इस टिप्पणी हाई कोर्ट के जस्टिस आरएन रैना ने यमुनानगर निवासी प्रखर कंबोज की याचिका को खारिज कर दिया।
चंडीगढ़ :यदि किसी कर्मचारी की मौत के बाद सरकार उसके परिवार को उचित आर्थिक सहायता उपलब्ध करवा देती है तो सरकार उसके परिवार को सरकारी नौकरी देने के लिए बाध्य नहीं है। उचित आर्थिक मदद देना भी किसी नौकरी से कम नहीं है। इस टिप्पणी हाई कोर्ट के जस्टिस आरएन रैना ने यमुनानगर निवासी प्रखर कंबोज की याचिका को खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कंबोज ने
बताया कि उसके पिता एचसीएस अधिकारी वर्ष 1995 में डबवाली में एसडीएम के पद
पर नियुक्त थे। डबवाली के डीएवी स्कूल में 23 दिसम्बर 1995 के एक
कार्यक्रम में उनके पिता मुख्य अतिथि थे और वहां अग्निकांड हो गया। इस
हादसे में सैकड़ों बच्चों के साथ उसके माता-पिता की भी मौत हो गई और वह
बेसहारा हो गया। याची ने कोर्ट को बताया कि उस समय सरकार ने उसे 3 लाख
रुपये की आर्थिक सहायता दी और उसके पिता की सेवानिवृत्ति आयु तक उसे पूरा
वेतन देने का ऑफर दिया। उसने मई 1996 में जब नौकरी के लिए आवेदन किया था तब
वह नाबालिग था। ऐसे में सरकार ने उसकी अर्जी को विचाराधीन रख लिया था।
मई
2007 में सरकार ने उसे सूचित किया कि अनुकंपा आधार पर नौकरी देने की नीति
में बदलाव कर अनुकंपा सहायता की नीति लागू कर दी है। आपको नौकरी नहीं दी जा
सकती। प्रखर कंबोज ने हाई कोर्ट में सरकार के इस निर्णय को चुनौती दी थी।
इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि याची ने 18 साल तक अपने पिता का पूरा वेतन
प्राप्त किया और सरकार ने उचित आर्थिक सहायता भी दी। ऐसे में वह सरकार को
याची को नौकरी देने का आदेश नहीं दे सकता। यह सरकार को तय करना है कि
अनुकंपा आधार पर नौकरी दे या वित्तिय सहायता दे।
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