कैथल : भाजपा सरकार भले ही प्रदेश को डिजिटल बनाने के लाख दावे कर रही हो लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है। स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा अनिवार्य कर दी गयी है लेकिन लैब की तस्वीरें बताती हैं कि यहां रखे ये कंप्यूटर धूल फांक रहे हैं। कारण यह है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले तो लाखों बच्चे हैं मगर अन्य कई विषयों की तरह इन स्कूलों में कंप्यूटर का ज्ञान देने वाले शिक्षकों की खासी कमी है। शिक्षा विभाग की फाइलों में सरकारी स्कूलों में न केवल कंप्यूटर का ज्ञान दिया जाता है बल्कि कंप्यूटर शिक्षा को एक अनिवार्य विषय मानते हुए सप्ताह में हर कक्षा के लिए कम से कम 6 पीरियड निर्धारित किए गए हैं। हकीकत पर गौर करें तो मौजूदा शैक्षिणक सत्र से अभी तक कोई भी कंप्यूटर शिक्षक किसी भी स्कूल में कार्यरत नहीं है। गौरतलब है सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा के लिए वर्ष 2013 में शिक्षा विभाग द्वारा कुल 2600 कंप्यूटर टीचर्स की नियुक्ति की गयी थी मगर वर्तमान सरकार ने इन शिक्षकों का अनुबंध इसी साल मार्च में खत्म कर इनकी जगह नए शिक्षकों की भर्ती के लिए आवेदन माँग लिए। इधर स्कूलों में पहले से कार्य कर रहे कंप्यूटर टीचर्स ने नयी भर्ती को हाईकोर्ट ने चुनौती दे दी।
करोड़ों के उपकरण ठप
प्रदेश में करीब 3100 स्कूलों में आईसीटी के तहत कंप्यूटर शिक्षा के लिए करोड़ों रुपए की लागत से कंप्यूटर लैब बनाई गई है। मगर इस वक्त लैब को कोई भी संभालने वाला नहीं है। नतीजा यह है कि स्कूल में लाखों रुपए के कंप्यूटर के साथ साथ महंगे उपकरण भी धूल फांक रहे हैं। राज्य के स्कूलों में 3118 कम्प्यूटर लैब हैं। लेकिन जून माह से इनको ताले लगे पड़े हैं। 3136 टीचर, लैब सहायक हड़ताल पर है और कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में करीब 4 लाख बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा नहीं मिल पा रही है।
क्या कहते हैं कंप्यूटर टीचर
इस बारे में जब कंप्यूटर शिक्षक संघ से बात की गयी तो प्रदेश अध्यक्ष बलराम धीमान ने बताया कि न्यायालय का जो भी फैसला होगा वह सर्वमान्य होगा। कंप्यूटर शिक्षक संघ के प्रदेश प्रेस प्रवक्ता सुरेश नैन ने बताया पूरे मामले में टीचर्स का पक्ष पूरी तरह से मजबूत है तभी न्यायलय ने भर्ती प्रक्रिया को रोक दिया है।
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