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Wednesday, 30 November 2016

योग की शिक्षा पर सरकार तीन महीने में ले फैसला

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह तीन महीने के भीतर फैसला ले कि वह कक्षा एक से आठ तक के बच्चों के लिए स्कूलों में योग अनिवार्य करना चाहती है कि नहीं। इस टिप्पणी के साथ ही न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को वकील जेसी सेठ और वकील अश्वनी उपाध्याय की ओर से दाखिल दोनों याचिकाएं निपटा दीं। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह याचिकाओं को ज्ञापन मानते हुए तीन महीने में उन पर फैसला ले। अगर इसके बाद याचिकाकर्ताओं को कोई शिकायत रहती है तो वे फिर कोर्ट आ सकते हैं। 
जेसी सेठ और अश्वनी उपाध्याय ने दो जनहित याचिकाएं दाखिल कर मांग की थी कि कक्षा एक से आठवीं तक के पाठ्यक्रम में योग को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए। उपाध्याय ने याचिका में विभिन्न मौलिक अधिकारों की दुहाई देते हुए कहा गया था कि मानव संसाधन मंत्रलय, एनसीईआरटी, एनसीटीई और सीबीएसई को निर्देश दिए जाएं कि वे आठवीं तक के छात्रों के लिए योगाभ्यास और स्वास्थ्य शिक्षा की पाठ्य पुस्तक तैयार करे। कहा गया था कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क 2005 कहता है कि योग प्राथमिक शिक्षा का आवश्यक विषय है। इसे अन्य विषयों के साथ बराबरी का दर्जा दिए जाने की जरूरत है। मांग थी कि योग को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क 2005 और आरटीई कानून 2009 की धारा 7 (6) के तहत अधिसूचित किया जाना चाहिए।

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