फतेहाबाद : आम मान्यता है कि बेहतर नर्सरी में ही श्रेष्ठतम पौध संभव है।
सरकारी स्कूलों की अवधारणा इसके विपरीत दिखाई देती है। देश के भविष्य कहे
जाने वाले बच्चों के लिए खेल का मैदान ही नदारद है। यह अलग बात है कि
प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग ने इसका संज्ञान लिया है। विभाग ने आदेश जारी
कर तत्काल प्रभाव से स्कूल में खेल के मैदान संबंधित जानकारी मांगी है।
संभव है जिन स्कूलों में मैदान नहीं होंगे उन्हें विभाग का कोपभाजन शिकार
होना पड़ेगा।
इस सरकारी व्यवस्था के अलोप में जब स्कूलों
में खेल स्टेडियम की दशा की तहकीकात की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
एक तिहाई से भी कम स्कूलों में खेल के मैदान हैं। इन खेल के मैदानों की
हालत भी काफी खस्ता है। जिले के 626 सरकारी स्कूलों में से मात्र 136
स्कूलों में ही खेल के मैदान हैं। इसके अलावा किसी भी स्कूल में इंडोर
मैदान नहीं है। स्कूल परिसर से बाहर बने मैदानों में से 120 खेल मैदान
कच्चे हैं।
स्कूलों में दो से तीन ही मैदान :
जिले के सरकारी स्कूलों में
जहां पर मैदान हैं वहां पर भी पूरी खेल के मैदान नहीं है। किसी भी स्कूल
में तीन से ज्यादा मैदान नहीं है। जबकि स्कूलों में बास्टकेटबॉल, वालीबाल,
खो खो, कबड्डी, फुटबॉल, हैंडबाल, बैंडमिंटन, थ्रोबॉल, हॉकी, योगा के लिए
व्यवस्था होनी जरूरी है।
निजी स्कूलों पर प्रेशर, खुद के हालात चिड़ियाघर
जैसे :
प्रदेश सरकार ने प्राइवेट स्कूलों को मान्यता लेने से पहले शर्त तय
कर रखी है कि स्कूल के पास खेलने के लिए मैदान होना चाहिए। लेकिन शहर के ही
सरकारी स्कूलों पर नजर डालें तो अधिकतर स्कूल चिड़ियाघर से भी बदतर हालत
में चल रहे हैं। शहर के प्राइमरी स्कूल स्वामी नगर, अशोक नगर, ठाकर बस्ती,
मस्जिद वाला स्कूल, भीमा बस्ती, शक्ति नगर में बच्चों को पढ़ाने के लिए भी
जगह नहीं है। ये ही हालात रतिया व टोहाना शहर स्कूलों के हैं। वहां खेल
मैदान तो दूर, बैठने के लिए भी पर्याप्त जगह नहीं है।
हमने नहीं देखा पांच
साल से खेल का सामान :
स्कूल इंचार्ज का कहना है कि पिछले पांच साल से
स्कूलों में किसी प्रकार से खेल का सामान नहीं हैं।गांव धांगड़ के सरकारी
स्कूल में खेल मैदान मे सुविधा का अभाव।
खेल मैदान से ज्यादा पीटीई,
डीपीई
जिले में स्कूल मैदान 136 के करीब हैं, जबकि सिखाने वाले पीटीई व
डीपीई की संख्या दो सौ के करीब है। मैदान न होने के कारण विभाग ने कई
स्कूलों में दो से ज्यादा पीटीई व डीपीई तैनात कर रखे हैं।
"विभाग खेल को
बढ़ावा देने के दावे कर रहा है लेकिन हकीकत सामने है। स्कूलों के पास कच्चे
मैदान के अलावा कुछ नहीं है। पिछले काफी सालों से हमने कभी नहीं देखा कि
स्कूलों के पास कभी खेल का सामान आया है। बच्चों को स्टेट स्तर की
प्रतियोगिता की तैयारी के लिए भी सामान नहीं मिलता है।"-- सीएन भारती,
महासचिव, हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ।
"शहर में चल रहे स्कूलों में जगह
की कमी
के कारण खेल के मैदान नहीं हैं। इसके अलावा गांवों में स्कूलों के पास जगह
भी है और सामान भी है। मैदान की मरम्मत
व सामान के लिए स्कूलों से डिमांड मांगी
गई है। प्राइमरी स्कूलों में मेजर खेल नहीं होते हैं इसलिए प्राइमरी
स्कूलों के लिए अलग
से ग्रांट नहीं आती है।"-- दयानंद सिहाग, उप जिला शिक्षा अधिकारी, फतेहाबाद।
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