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Friday, 3 June 2016

नियमों के फेर में लटका मुफ्त शिक्षा का अधिकार

नई दिल्ली : देशभर में बच्चों को 14 साल तक मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा (आरटीई) प्रदान करने के उद्देश्य से लागू शिक्षा का अधिकार कानून का लाभ राजधानी में ही हजारों बच्चों को नहीं मिल पा रहा है। समस्या कानून की नहीं बल्कि इसे लागू करने वाले स्कूलों पर स्थानीय प्रशासन के नियमों की है, जिसके परिणामस्वरूप न चाहते हुए भी गरीब अभिभावकों को या तो सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना पड़ रहा है या फिर अपना पेट काटकर पांचवीं के बाद बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना पड़ रहा है। कारण, राजधानी में दिल्ली नगर निगम से मान्यता प्राप्त ऐसे करीब 1100 छोटे निजी स्कूल हैं जिनकी मान्यता पांचवीं कक्षा तक ही सीमित है और ऐसे स्कूल गरीब कोटे के विद्यार्थियों को पांचवीं के बाद छठीं में पढ़ा पाने में असमर्थ हैं।
उत्तम नगर के रहने वाले संजीत कुमार सिंह ऐसे ही अभिभावक हैं जिनका बेटा हिमांशु पिछले पांच सालों से गरीब कोटे के अन्तर्गत निजी स्कूलों में उपलब्ध 25 फीसद सीटों पर मुफ्त शिक्षा प्राप्त कर रहा था। संजीत ने बताया कि इस बार इस स्कूल में उपलब्ध कक्षाएं खत्म हो गई हैं और शिक्षा का अधिकार कानून के अन्तर्गत 14 साल तक मुफ्त शिक्षा पाने के योग्य मेरे बच्चे को पांचवीं कक्षा के बाद से ही यह अवसर उपलब्ध नहीं है। संजीत ने बताया कि दरअसल, उनके बच्चे का दाखिला स्थानीय सरकारी स्कूल में हो रहा है लेकिन उनका बच्चा वहां जाने को तैयार नहीं, ऐसे में जिस स्थानीय निजी स्कूल में दाखिला उपलब्ध है वहां गरीब कोटे की सीटें पहले से भरी हुई हैं। संजीत कहते है कि समस्या इतना बड़ी है कि बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ने को तैयार नहीं है और निजी स्कूल में पढ़ाने की मेरी क्षमता नहीं है। ये कहानी अकेले संजीत की नहीं है। राजधानी में ऐसे करीब 1100 स्कूल हैं और यदि प्रति स्कूल 50 बच्चे भी छठी कक्षा में दाखिला ले रहे हैं तो इस परेशानी से करीब 50 हजार विद्यार्थी व उनके परिवार प्रभावित हो रहे हैं।1कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ पब्लिक स्कूल, दिल्ली में आरटीई विंग के प्रमुख चंद्रकांत सिंह बताते हैं कि वर्ष 2010 में लागू शिक्षा का अधिकार कानून बच्चों को 14 साल तक मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है लेकिन दिल्ली में नियमों के फेर में ये लाभ अधूरा है। इस समस्या का समाधान निगम से मान्यता प्राप्त स्कूलों को तीन कक्षाओं की खंडित मान्यता देने से हो सकता है लेकिन सरकार इस ओर ध्यान ही नहीं दे रही है, जिसके चलते गरीब परिवारों के बच्चों के लिए स्कूली पढ़ाई भी मुश्किल हो रही है। 
इस विषय में नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स एलांइस (नीसा) के सचिव अमित चंद्रा कहते हैं कि यह समस्या बड़ी है। शिक्षा के अधिकार कानून का उद्देश्य राजधानी में मान्यता के फेर में पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। अमित कहते हैं कि इस समस्या के निदान के लिए दिल्ली सरकार को खंडित मान्यता का प्रस्ताव दिया गया है जिसे मंजूरी मिलने से हजारों बच्चों के परिवारों को राहत मिल सकती है। अमित ने बताया कि खंडित मान्यता में हमारी मांग है कि पांचवीं तक के छोटे निजी स्कूलों को आठवीं तक (तीन कक्षाएं दूसरी पाली में), आठवीं तक के स्कूलों को दसवीं तक (दो कक्षाएं दूसरी पाली में) और दसवीं तक के स्कूलों को बारहवीं तक (दो कक्षाएं दूसरी पाली में) पढ़ाने की मंजूरी दी जाएं। यदि ऐसा होता है तो न सिर्फ शिक्षा का अधिकार बल्कि दिल्ली के अन्य बच्चों के लिए भी स्कूली शिक्षा आसान हो जाएगी।                                             dj

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