प्रदेश में सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूलों की संख्या 1667 हैं जहां कई विषयों के शिक्षकों के सैकड़ों पद खाली हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर भी निजी स्कूलों की अपेक्षा बेहतर नहीं है। इसके बावजूद सरकारी स्कूलों का प्राइवेट के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन अपने आप में चौंकाने वाली बात है। यहां यह जानना जरूरी है कि पिछले साल तक रिजल्ट बेहतर क्यों रहता था। शिक्षाविद् इसका सबसे अहम कारण ग्रेस मार्किंग बताते हैं। उनका कहना है कि सीबीएसई स्कूलों के समकक्ष अपने को बनाए रखने का दबाव हरियाणा बोर्ड पर इस कदर हावी रहता है कि उसने ग्रेस मार्किंग से परहेज नहीं किया। इस साल जैसे ही बोर्ड ने ग्रेस मार्किंग का चोला उतारा, रिजल्ट 2011 के मुकाबले 13.54 फीसदी नीचे गिर गया। सूत्र बताते हैं कि रविवार को रिजल्ट जारी करने से पहले बोर्ड अध्यक्ष डॉ. केसी भारद्वाज के साथ आला अधिकारियों की बैठक हुई जिसमें रिजल्ट को लेकर डेढ़ घंटे तक मंथन हुआ।
"ये तो होना ही था। पिछले साल तक अच्छा रिजल्ट बड़े स्केल पर ग्रेस मार्किंग के कारण रहा। इस साल बोर्ड ने यह नहीं दिया। असल में बोर्ड ने प्राइवेट और एडिड स्कूलों को हाशिए पर लाने के लिए ग्रेस के जरिए रिजल्ट को इम्प्रूव किया। जब आलोचना शुरू हुई तो बोर्ड ने ग्रेस मार्किंग से हाथ खींच लिए। इस साल रिजल्ट गिरने से साफ है कि बोर्ड कारगर कदम उठाने में फेल रहा है। सरकार की एडिड स्कूलों को लेकर पॉलिसी प्रॉपर नहीं है।" - रमेश बंसल, प्रदेश महामंत्री, एडिड स्कूल अध्यापक संघ, हरियाणा। ..db
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