अम्बाला सिटी : डीईईओ कार्यालय ने अम्बाला के 643 स्कूलों के लिए पांच लाख रुपए सिर्फ चॉक पर ही खर्च कर दिए। बड़ा सवाल यह है कि चॉक के डिब्बे पर न तो किसी कंपनी का नाम अंकित है और न ही कीमत लिखी गई है। वहीं डस्टर के नाम पर एक रुमाल (कपड़ेनुमा) खरीदा गया, जिसकी कीमत 28 रुपए है। स्कूलों में भेजे गए पांचों सामान अम्बाला सेंट्रल कोऑपरेटिव कंज्यूमर स्टोर लिमिटेड (सुपर बाजार) के माध्यम से एक फर्म से खरीदे गए हैं। स्टोर ने ऑर्डर नंबर ए-1/13/1955 के अनुसार 29 जुलाई 2013 को डीईईओ कार्यालय के नाम पर 757500 रुपए और 2,34,584 रुपए के अलग-अलग बिल भेजे हैं। इन पर स्टोर ने प्रत्येक आइटम की कीमत और संख्या लिखी है। साथ ही एसबीआई का खाता नंबर और यूएनआई कोड भी अंकित है। बिल की मूल प्रतियां कार्यालय में हैं और इन पर मौलिक शिक्षा विभाग के किसी अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं हैं। वहीं बुधवार को मौलिक शिक्षा विभाग के समर्थन में एक सरकारी अधिकारी ने एक बीईओ को फोन करके बयान बदलने के लिए दबाव बनाया।
बता दें कि मौलिक शिक्षा विभाग ने स्कूलों के शैक्षणिक और फुटकर खर्च के लिए आए 9 लाख 92 हजार रुपए के फंड को स्कूलों में नहीं भेजा। बल्कि बिना किसी अधिकार के स्वयं खरीद कर ली। खास बात है कि सभी 643 स्कूलों के लिए एक जैसी शैक्षणिक सामान की जरूरत दिखाकर सामान खरीदा गया है। सभी खंड शिक्षा अधिकारी भी पुष्टि कर चुके हैं कि उन्होंने (डीईईओ कार्यालय) किसी भी स्कूल से डिमांड नहीं ली।
टॉयलेट और टाइल क्लीनर गुडग़ांव की कंपनी का : पांच लीटर हर्बल सेंटीजर (एमआरपी मूल्य 315 रुपए), एक लीटर टाइल क्लीनर (240 रुपए) की बोतल पर गुडग़ांव की एक कंपनी का लेबल है। दोनों बोतल की पैकिंग पर मेन्युफैक्चरिंग तिथि (दिन और महीना) अंकित नहीं है। केवल साल 2012 लिखा है और एक्सपायरी अवधि एक साल है। ऐसे में स्थिति संदेहजनक है, कहीं मॉल एक्सपायरी डेट का तो नहीं? चॉक के डिब्बों पर कीमत और कंपनी का नाम नहीं लिखा है, लेकिन एक छोटा डिब्बा 26 रुपए का खरीदा गया है। एक स्कूल के 1500 रुपए के फंड में से 780 रुपए चॉक पर ही खर्च कर दिए गए। जबकि डस्टर एक कपड़े का टुकड़ा है। टाइल क्लीनर पर अंकित कंपनी के कस्टमर केयर नंबर पर कॉल की। कर्मचारी ने दस स्कूलों के लिए हर्बल सेंटीजर (पांच लीटर) 130 रुपए और टाइल क्लीनर 110 रुपए (प्रति लीटर) के हिसाब से देने का दावा किया। यह कीमत बिना वैट का है। कर्मचारी का कहना है कि कोई भी व्यक्ति कंपनी से सीधा सामान खरीद सकता है। इस पर तीन प्रतिशत अतिरिक्त डिस्काउंट भी दिया जाता है। जबकि फर्म से टाइल क्लीनर 240 रुपए (एमआरपी) और हर्बल सेंटीजर 300 रुपए में खरीदी गई।
खरीद की पॉलिसी
हरियाणा सरकार के नियम के अनुसार शिक्षा विभाग में ३ प्रकार की कैटेगरी है। अम्बाला के स्कूलों के लिए जो सामान खरीदा गया है, वह तीसरी कैटेगरी में आता है। इस कैटेगरी में चॉक, डस्टर, चार्ट, लेबोरेटरी के सामान, बुक्स और कलर्स हैं। इसे खरीदने की पॉवर स्कूल की परचेज कमेटी को है। इसमें स्कूल हेड और सीनियर टीचर शामिल होते हैं। स्टेट हेडक्वार्टर द्वारा फंड स्कूल कमेटी को भेजा जाता है। जिला व खंड स्तरीय अधिकारी इस खरीद की केवल सुपरविजन कर सकते हैं।
"हमने कोई गलत काम नहीं किया। मेरे पास बीईओ की मांग के दस्तावेज हैं।"-- परमजीत शर्मा, डीईईओ अम्बाला।
रिकॉर्ड चेक करेंगे
सरकारी विभागों को सामान सप्लाई करने के लिए स्टोर अधिकृत हैं। सामान फर्मों से खरीदा जाता है। पिछला रिकॉर्ड चेक करने के बाद ही बताया जा सकता है कि किस फर्म ने हमारे माध्यम से सामान मौलिक शिक्षा विभाग को भेजा है। एमपी शर्मा, अधिकारी, दि अंबाला सेंट्रल कोऑपरेटिव कंज्यूमर स्टोर लिमिटेड।
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