प्रदेश के स्कूल-कॉलेजों में छात्रओं के साथ
छेड़छाड़ की घटनाएं चिंता में डालने वाली हैं। शायद ही कोई दिन या सप्ताह
हो जब यह समाचार नहीं मिले कि अमुक संस्थान में शिक्षक ने छात्र से यौन
र्दुव्यवहार किया। यह स्थिति प्राइमरी स्कूलों से लेकर कॉलेज और
विश्वविद्यालय तक की है। जो मामले सामने आ रहे हैं वे बहुत कम हैं। हकीकत
में स्थिति बहुत खराब है। ज्यादातर जगह पीड़िता प्रताड़ना बर्दाश्त कर लेती
हैं और मामला दबा रह जाता है। विश्वविद्यालय या कॉलेजों में तो छात्रएं
अपनी बात रख भी लेती हैं, लेकिन मासूम बच्चियां क्या करें? उन्हें तो यह भी
नहीं पता होता कि उनके साथ क्या हो रहा है? सबसे शोचनीय स्थिति यह है कि
ऐसा कुकृत्य करने वाले वे लोग हैं जिन्हें भावी पीढ़ी को नैतिकता,
ईमानदारी, सतकर्म जैसे सात्विक गुणों की सीख देकर एक जिम्मेदार नागरिक
बनाना है। विद्यार्थियों को इस लायक तैयार करना है कि वे समाज और देश का
भला कर सकें। मगर यहां तो स्थिति ही उलटी है। बेशक अध्यापन से जुड़े सभी
लोग ऐसे नहीं हैं। मगर उन लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो इस पेशे
की पवित्रता नहीं समझ पा रहे या उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं है। वे तो महज
नौकरी कर रहे हैं और उसी रूप में इसे लेते हैं। उनके इस पेशे में आने का
कारण कोई उच्च आदर्श नहीं है। यह सही है कि शिक्षक भी इसी समाज का हिस्सा
हैं और उसमें हो रहे बदलावों से वे बचे कैसे रह सकते हैं, लेकिन उनसे यह
उम्मीद तो की ही जा सकती है कि पेशेगत ईमानदारी बरतें। अनैतिक कृत्य करने
वाला नैतिकता की सीख कैसे दे सकता है?
ज्ञान के मंदिर के अपवित्र होने के
लिए सरकार भी कम दोषी नहीं है। बेशक उसने यौन र्दुव्यवहार रोकने के लिए कई
उपाय किए, लेकिन यह देखना भी उसकी जिम्मेदारी है कि उसका क्या परिणाम रहा?
सभी स्कूलों में शिकायत पेटिका रखवा दी गई ताकि छात्रएं अपनी शिकायत लिखकर
उसमें दे दें और उस पर उचित कार्रवाई की जा सके। आज ज्यादातर जगहों पर
इन्हें हटा लिया गया है। जहां हैं, वहां देखने की जरूरत नहीं समझी जाती।
तर्क यह कि इसका दुरुपयोग होने लगा था। दुरुपयोग रोकने के बजाय उस व्यवस्था
को ही खत्म कर देना कहां की समझदारी है? बेहतर होगा कि सरकार शिक्षा के
क्षेत्र को देखने का अलग दृष्टिकोण विकसित करे। शिक्षकों की चयन प्रक्रिया
ऐसी हो कि समाज को नैतिक शिक्षक मिलें जो भावी पीढ़ी को नैतिक बना सकें। dj edtrl
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